शैव सर्वस्व | Shaiv Sarwasva

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Shaiv Sarwasva by प्रतापनारायण मिश्र - Pratapnarayan Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३ प्रकाश है | तो प्रेमियों को आंख कौ पुतनी से भी प्यारा है लो अनंत विशामय है सबवेदायच चे कौभवं ति उस का भी र कौन रंग मानें ? हमारे रसिक पाठक जानते हैं किसी सुन्दर व्यक्ति के नयन में काजल और गोरे गालों पर तिल कैसा मलालगता हे कि कथबियों की पूरी शक्ति और रमच्ीं का सवस्व एक बार उस छवि पर निक्वावर हो लाता हे फिर कहिए सब शोभामय परमसुन्दर का कौन रंग वाल्पना कौजिएगा १? समस्त शरीर में सर्वोपरि शिर हे उस पर केश केसे होते हैं ? फिर सर्वोत्क मइेश्वर का और क्या रंग होगा 9 यदि कोई लाखों योजन का बुत बढ़ा सैदान छइो . और रात को उस का अन्त लिया चाहो तो सौ द़ोसौ दो पका जला आगे प्र क्या उन से उस स्थल की छोरदेख लगे ? नहीं जहां तक दौपों का प्रकाश है वहां तक कुछ सूभोगा फ़िर बस तमासा गृढ़ससे ऐसेदी इमसारे बड़े २ सइघियों कौ बुद्धि जिसका मेद नहीं प्रकाश कर सकती उसे अप्रकाशवत्‌ न मानें तो क्या साने ? शौरासचन्द्र छाप्स चल्ट्राद़ि को यदि अंगरेजो लमानेवाले इश्वर न भी सानें सौभी यह मानना पड़गा कि हमारी अपेक्षा उन से और दू्तर से अधिक संवन्ध था फ़िर इस क्यों न कहे कि यदि उस परात्पर का कुक अस्तित्व है तो रंग यक्ी होगा क्यों कि उसके निन्न के लोग कई एक इसी रंग ढंग के है अब कारों का बिचार कौजिए तो अधिक्रत शिवसत्ति लिंगाक।र इोती हे लिस से हाथ पांव सुख समेत कुछ नहीं से सब




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