निबन्ध - नवनीत भाग - 1 | Nibandh - Navaneet Bhag - 1

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Nibandh - Navaneet Bhag - 1  by प्रतापनारायण मिश्र - Pratapnarayan Mishra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about प्रतापनारायण मिश्र - Pratapnarayan Mishra

Add Infomation AboutPratapnarayan Mishra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
€ २३ ) चहहु छ सायो निज फल्यान तो सब मिल्लि सारत-सन्तान ॥ जपो निरन्तर एक जबान । छिन्दी, हिन्दू , हिन्दुस्तान ॥ १॥ तथह्ि झुघरिद जन्म निदान । तपहि भलो फरिददै सगवान जय रदिहै निशिद्नि यह ध्यान। हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान ॥ २॥ इससे इनका देशामिमान भी सिद्ध छोता है। कविता के नसने । पडित प्रतापनारायण की कविता फे कुछ नमूने देकर दम इस खेस को पूरा फरना चादते है-- ढ आाठला-खामत | नोन, तेल, लकढी, घालछु पर टिफस लगे अछ्द 1 चना, चिर्रोजी मोल मिले जद दीन प्रजा फट ॥ जएा उपी, घाणिज्य, शिवप, सेवा सब माद्दी । देशिन फे द्वित कछू तत्व फजु फैसहु नादीं ॥ १ ॥ फकहिय फद्दा खगि नुपति दये है जह ऋन भारन 1 तह तिनक्ली धनकथा,कौन जो णद्दी सघारन॥ जे अनुशासन रन हेत इत पठये जाहीं। से बहुधा बिन काज़ प्रजा सो मिलत कजादीं ॥ २॥ खोफोक्ति शतक | छीौक्षि नागरी छुझुख़ मागरी उ्दू के रंग राते। (.” देशी धस्तु चिद्याय विदेशिन सो सर्देख ठगाते ॥




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now