प्रेम - पुष्पांजलि | Prem Pushpajali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कक किन्तु इस क्षणभंगुर संसार में क्या कुछ भी स्थिर रह सकता हैं नरदाहै नरहेगा। यदि हिन्दी-साहित्य-संसार में संस्कृत के सुभाषितरत्नभाएडागार ही की तरह का कोई झच्छा संग्रह -अंथ किसी कमंवीर और दानवीर की कृपा से प्रकाशित हो जाय तो हिन्दी का बड़ा भारी उपकार हो । में उपयुक्त संश्रह-मंथो की प्रशंसा इस लिये नहीं कर आया हूँ कि उन्हीं की श्रेणी में अपने इस छोटे प्रेम-संप्रह की भी गणना कराना चाहता हूँ बल्कि इस लिये कि अच्छे अच्छे बृहत्‌ संग्रह-प्रंथ प्रकाशित करने की ध्मोर सुयोग्य पुरुषों का ध्यान झाकर्षित करूँ । यह चुटकला संश्रह तो दो चार घड़ी की दिलचस्पी के लिये दै । पूर्वोक्त संग्रह से इस की तुलना ही कैसी ? उनके आगे इसका महत्व ही कर है ? झब इस पुस्तक के सम्बन्ध में सुझे इतना ही कहना है कि इसका सम्पादन करते हुए मेंने इसके शादि-प्रकाशक सिमवर कुसार देवेन्द्र प्रसाद के भावों की कहीं हत्या नही की हैं । जहाँ कही मैने काट-छाँट की हे वहाँ उनके सुख्य भावों की रक्षा का पूरा ध्यान रखते हुए अनावश्यक सामग्री श्रलग कर के उपयोगा तर रुचिकर साममी बहुलता से सम्सिलित कर दी गयी है । जहाँ तक उपयुक्त उपकरण उपलब्ध हो सका सेवा में उपस्थित करता हूँ । यदि सहष स्वीकार की जियेगा तो झागे साल चौथी आवृत्ति इससे भी सुन्दर लीजियेगा । अन्त में जिन माननीय कवियों की कविताएँ इस पुस्तक की शोभा की ंगपूर्ति के लिये संग्रहीत हुई हैं उन्दे कोटिश धन्यवाद




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