धर्म और राजनीति | Dharm Aur Rajneeti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बिद्व के विरूद्ध विद्रौीह करनेवाला भी मानता हैं जबतक कि ऐसे विद्वका अस्तित्व है। इसको वह एक जरूरत के रूप में स्वीकारता है । यदि धर्म एक सामाजिक रचना है तो यह एक सामाजिक शक्ति भी हैं जो सामाजिक विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है । इस प्रकार इसके दो पहलू हैं और वह समाज में वर्ग संघर्ष के दोनों पहलओं को प्रतिम्बित करता है । एक तरफ धर्म यदि आमजन- गण के द्वारा आत्मसमर्पण और यधास्थिति को स्वीकार करने के लिए शासक वर्ग के हाथों में एक हथियार के रूप में इस्तेमाल होता है और यथार्थरूप में सामाजिक विकास के क्रमिक अवस्थान में इसकी यदि भमिका रही है तो दूसरी तरफ यह शोधषित वर्गों के हाथों में दयासकों के विरूद्ध विद्रोह के हथियार के रूप में भी प्रयुक्त हो सकता हैं । धामिक परचमों के नीचे विद्व में दोषक और शोषित दोनों पक्षों की ओर से वर्ग युद्ध लड़ा जा सकता है भौर दुनिया में ऐसे युद्ध लड़े भी जाते रहे हैं । दुनिया के इतिहासकारों ने कुछ ऐसी गलत अवधारणाओं का निर्माण किया है कि दुनिया में बहुतेरे युद्ध धर्म के नाम पर या धर्म की रक्षा के लिए लड़े गये थे । किन्तु क्या यूनानियों और रोमवासियों ने किसी धर्म को फैलाने के छिए युद्ध किया था । इसका जबाब _ मिलता है--नहीं । थे युद्ध तो स्पष्ट रूप में गुछामी के लिए लोगों को बंदी बनाने और मन्य समाजों की सम्पत्ति छूटने के लिए लड़े गये थे । ईसाई धर्म जो कि गुलामी के विरूद्ध एक विचार धारा और धर्म के रूप में उदित हुआ था और जिसने ट्यूटोनी कबीछों के साथ मिलकर रोमन साम्राज्य और गुलामी को उल्लाड़ फेंकने में कुछ भूमिका अदा की थी स्वयं साम्राज्य और ईसाई धर्म युद्धों का एक विजय-ध्वज बन गया । विश्व में वाणिज्य और व्यापार फंलातें हुए अमरीकी कबीलों का जो कत्लेआम किया गया और पुर्तगालियों और स्पेनवासियों द्वारा जो कैथोलिक खोज भी गयीं उनसे लाखों लोगों का जीवन संकट में पड़ गया । अपने मूल रूप के ठीक विपरीत ईसाई धमं को शोषण-दमन के झंडे पर अंकित कर दिया गया । धर्म में राज्य के हस्तक्षेप का प्रदन भी इसी काल में उठा । ईसाइयों भर यहूदियों के बीच दन्द्र के परिणाम स्वरूप ईसाई जनता रोमन कैथोलिंक तथा प्रीटेस्टट नाम के दो सम्प्रदायों में बैंट गई । यूरोप के प्रत्येक देश में इस सम्प्रदाय-भेद से राजा और प्रजा में साधारण झगड़ा ही न रहने लगा वरन बड़े-बड़े खून-खराबे होने लगे । घर्ममेद के कारण राजा प्रजा पर अत्याचार करते थे और प्रजा राजा को पदच्युत करने का प्रयत्न करती थी । इंगलैंड के टू्यूडर-बंश के राज्य-काल में तो इस प्रकार के अत्याचार का ताँता बंध गया था । जब ईसाई धर्म के समानान्तर अरब में इस्लाम धर्म का उदय हुआ तो शीघ्र ही १. मार्क्स एण्ड गल्स रिलीजन पु० ४२३ हू हू 0 न




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