लोक जीवन और साहित्य | Lok Jeevan Aur Sahitya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Lok Jeevan Aur Sahitya by रामविलास शर्मा - Ramvilas Sharma

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामविलास शर्मा - Ramvilas Sharma

Add Infomation AboutRamvilas Sharma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
न जगाना उसका परिष्कार करना उसकी पुष्टि करना नहीं होता यह काम सुख्यतः साहित्य का हैं । कला और साहित्य की सरसता का सबसे बड़ा कारण उसका यह शावनामूलक स्वशाव है । मोटे तौर पर कह सकते हैं कि साहित्य में मचुष्य की बाद इन्द्ियाँ) हृदय और मस्तिष्क--तीनों का समन्वय होता है। रूप भावना और विचार की एकता से कला को स्रष्टि सम्भव है । इसी एकता के कारण साहित्य का प्रभाव दर्शन और विज्ञान के प्रभाव से भिन्न होता हैं | सादित्य मनुष्य को श्रेष्ठ विचार ही नहीं देता बह उन्हे कायरूप में परिशत करने के लिए प्रेरणा भी देता हैं । वह हमारा मनो- बल्ल दृढ़ (या कीण) करता है हमारा चरित्र बनाता या विगाड़ता है । वैज्ञानिक सौर दा्शतिक तके द्वारा हमें मले छाश्वस्त कर दें या पराजित कर दें उनके श्रेष्ठ विचारों में ्यास्था पैदा करना उन विचारों को आच- रण में उतारने के लिए ढ़ संकल्प पैदा करना साहित्य का ही काम हैं । इसी लिए मानव -चरित्र पर किसी जाति या राष्ट्र के चित्र पर मजुष्य के कर्ममय जीवन पर जितना श्रभाव साहित्य का पढ़ता है उतना दशंन या विज्ञान का नहीं । साहित्य की यह सबसे बड़ी उपयोगिता है जो लोग कहते हैं कि साहित्य में विचारों का महत्व नहीं है महत्व विचारों की अभिव्यक्ति के ढंग का हू या महत्त्व केवल भावना (इमोशन) का दै वे साहित्य का प्रभाव कम कर देते हैं रूप-भावना-विचार में किसी एक का ही महत्व घोषित करते हैं । गोस्वामी तुलसीदास ने साहित्य की प्रक्रिया का बहुत ही युक्ति पूण वर्सन किया है-- हृदय सिंधु मति सीप समाना | स्वाती सारद कहूँ सुजाना 1 जो बरखे बर वारि विधारू । होहिं कबित मुक्रता-मनि चारू | यहाँ गोस्वामीजी मे साहित्य में विचारों की उदातत भूमिका को उचित स्थान दिया हे । श्रेष्ठ विचारों के न होने पर केवल डृदय-सिंघु से काव्य के मुक्ता-मणि निकालना असम्भव दे । गोस्वामीजी रामकथा रूपी जल




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now