भविष्य पुराण एक सांस्कृतिक अनुशीलन | Bhavishya Purana-ek Sanskritik Anusheelan

Bhavishya Purana-ek Sanskritik Anusheelan by श्रीमती ज्योति अरोरा - Srimati Jyoti Arora

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मनुस्मृति मे स्पष्ट कहा गया है कि पितृफर्म श्राद्ध के अवसर पर निमन्त्रित ब्रहमणो को यजमान वेद धर्मशास्तर आख्यान इतिहास पुराण तथा खिल सुनाएँ। सस्कृत के महान गद्य कवि बाणभट्ट (सातवी शती ) द्वारा रचित कादम्बरी तथा हर्षचरित मे पुराणों का उल्लेख विशेष रूप से प्राप्त होता है। कादम्बरी मे एक स्थल पर पुराणेणु वायुप्रलपितमु उद्धरण मिलता है। अन्यत्र पुराणमिवयथाविभागावस्थापित सकलभुवनकोशम्‌ तथा आगमेषु सर्वेप्वेव पुराण रामायण भारतादिषु----शापवार्ता श्रूयन्ते उल्लेख बाणभट्ट के समय मे पुराणों की लोकप्रियता को सिद्ध करते है। इसी प्रकार हर्षचरित मे भी पवमानप्रोक्त पुराण पाठ एवं पुराणमिद उल्लेख पुराणों की लोकप्रियता विशेषकर वायुपुराण की प्रसिद्धि के परिचायक है। आधुनिक शबरस्वामी कुमारिल शकराचार्य तथा विश्वरूप आदि पुराणों से उद्धरण देकर अपने विचारों की सपुष्टि करते है। अलबरूनी नामक अरबी ग्रथकार ने अपने ग्रन्थ मे पुराण से बहुत सी सामग्री ग्रहण की जो उन पुराणों मे आज भी उपलब्ध है। उपर्युक्त समीक्षा के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वैदिक कालीन पुराणों की मौखिक परम्परा का ग्रन्थ रूप मे परिणत होने के सकेत उपनिषद्‌ काल मे ही प्राप्त होने लगे थे जिनमे पुराणों की गणना अधीत शास्त्रों में की गई है। जबकि धर्मसूत्रो ने पुराणों को स्पष्ट रूप से स्वाध्याय तथा पठन पाठन का विषय स्वीकार कर उन्हे ग्रन्थो की श्रेणी मे लाकर खड़ा कर दिया। अवान्तर काल मे पुराणों को वेदों के समकक्ष मान्यता प्रदान की जाने लगी तथा पुराणों की गणना भी पवित्र ग्रन्थो मे की जाने लगी। लकतणननकाततफकाननयणतवतपकपकाकापपफकाफाप्ाणणयऊं कक ताज दणण्यिकाकरातिण ऋषि किंतु तिवारी कि करायनणणणया 1- मनुस्मृति 3.232




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