राजस्थानी नाटक | Rajasthani Natak

Rajasthani Natak by डॉ. दशरथ शर्मा - Dr. Dasharatha Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजस्थानी. नेठ मास्र में गाजियो.. जे. उजियाठ पाख गरभ से पाछढा.... जोसी. बोढे साख ४६ पाख में आद्रादिक दस रिच्छ सजठ दोय निजंठ कहो... निजेंठ प्रतच्छ ४० जेठ दज्यादी तीज दिन... आद्रा रिख. वरसंत जोसी भाखे भइठी ... दुरमिख अब्रस करत £१ च्यारं ज पाया मृझ का... तपे जेठ के मास च्यार पाख में जाणिये... अत घण पावस आस ९ ६ आाषाढ़ जेठ वीयां पेछ पढ़न्ना.. जे. थरदर आसाद-साव्रण काढ कोरो.. भादव्रे वरखा. करे 2३ ४६ जेंठ मासमें शुक्लपक्षमें यदि बादल गरजे तो जोशी साक्षी कहता है कि . पिछले सब गे गल गये ( पानी नहीं बरसेगा ) । ५० जेठके झुक्ठपक्षमें आद्रा भादि दस नक्षत्रॉंगें यदि पानी बरसे तो. वर्षा नहीं होगी _ ..... और यदि पानी न बरसे तो प्रत्यक्ष ही वर्षा होगी । भ्रश जेठ सदी तृतीयाके दिन यदि आरा नक्षत्र हो और पानी बरसे तो जोशी कहता है कि हे भडडुली अवश्य ही दुरभिक्ष करे ५२ लेंठके महीनेमें मूल नक्षत्र के चारों पाये ( जब चंद्रमा मूल नक्षत्र में दो ) यदि खूब तप ( उन दिनों खब गर्मी पड़े ) तो चार पखवाड़ोंके भीतर ही खूब वर्षा की आशा समको |... शूं३ लेठ बीतनेके बाद जो. पहली प्रतिपदा पढ़ उस दिन ( अर्थात आसाढ़ वदी प्रतिपदाकों यदि आकाश गरजे तो आसाढ़ और सावन दोनों को खाली निकाल कर. भादों में बा करे । व मी




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