कालिदास और शेक्सपियर | Kalidas Aur Shexpiyer

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Kalidas Aur Shexpiyer by पं. छन्नूलाल द्विवेदी - पं. छन्नूलाल द्विवेदी - Pt. Chhannulal Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ ) यूतराष्ट्र की बातें न जाने इचा में कहाँ उड़ जाती हैं। उस असुर बल- प्रधान कुरुपक्ष ने देव-द्रोही बन कर और धर्म के विरुद्ध पक्ष लेकर सहाभारत ऐसे घोर संग्राम से प्थ्वी को डगमगा दिया तो इसमें कौन जाश्चय ? पाप पर्स संसार का चित्र खींचना अधिक कठिन नहीं है क्योंकि बह तो सर्वत्र ही देख पड़ता है । जिधर नजर फेरिए उधर ही पाप की कलूंकित सूर्ति देख पड़ेगी । वही सुर्ति देख कर उसका चित्र खींच लो । शेक्सपियर से केवल इतना ही नहीं किया इतने ही से उनको सन्तोष नहीं हुआ । उन्होंने उसमें अपनी भी बड़ी करामात दिखाई है। उन्होंने गेसे ही चित्नों से लेडी सैकबेथ आदिकी सृष्टि की है। ऐसी आसुरिक सृष्टि ससार में नाम मात्र की है। आयं-कवियों ने इसका ढीक उल्टा मार्ग पकड़ा है । उन्होंने धर्म की ही असाधारण सूर्ति गढ़ी है। आप कह सकते हैं कि धर्म की जो सुर्ति सर्वत्र ही देख पड़ती है साहित्य में उसका चित्र खींचने से क्या प्रयोजन ? छुक बार आंख उठा कर देखने से ही वह सुति चारों ओर दिखलाई पड जायगी-। किन्तु ऐसी बात नहीं है। साहित्य मे जो चित्र अंकित है ज्ञायगा व सदा सवंदा के ठिये रह जायगा । उस चित्र से असामान्य झूप का समावेश होना चाहिए । उस असासान्य रूपकी सुष्टि एक सामान्य चित्र का रुप देख कर ही करनी होगी । इसी असानुषी रूप सच्टि का आदर्श आर्य कवियोंगे लिलोसमा में दिखाया है। जैसे तिलोतमा बाहय-सौन्दयं की सृष्टि है वेसे हो आयं साहित्य के सभी आदेश सानलिक-सौन्दय की सष्टि हैं । तिलोत्तसा की रचना शेक्सपियर नहीं कर सकते यह बात नहीं हैं । उन्होंने कई सिलोचमा आओ की रचना मेँ की हैं। उनकी तिलोत्तमा मिरण्डा (01 € 7९17 010कपा 6५ 9९५५9 रोज़ेलिण्ड आर हार्मियन हैं । किस्दु-मार्कसिक-र्पैल्द्य की - लिलोतसा बनाने में वे ायं-कबियों-से-हार गए हैं । उनकी-सिरण्डा शकुन्तलाके सामने सिर कह सिएा 088 पैंट कावघब का 485 सिछिा णाा0- पे डिफिघोटल५लत। ५ एक 7 छाए ते घेघफ्राह अ0प्00पय ) िा8 1879 131




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