इंसान | Insaan

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Insaan by यज्ञदत्त शर्मा - Yagyadat Shrma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लाही पाकिस्तान मैं . छं हुजूर जिस शहर में जहांगीए जैसे रिश्रायापरवर शहंशाह का मक़बर। है वर्दी पर यह जुल्म हो रहा है । शाह शाह की रूह रो रही होगी इन मुसलमानों की काली करतूतों को देखकर । बुजुर्ग की श्ावाज मैं एक ऐसा दर्द था कि मानो कोई राक्षस उनके द्रपने मकान और बाल-बच्चों को जलाकर खाक कर रहा हो । क्या चारों ओर श्राग लगी हुई है ? आज्ञाद ने आश्चयं से पूछा | पजी हाँ जब से लादौर के पाकिस्तान में आने की ख़बर मिली हैं उस समय से हिन्दुओं को यहाँ के गुणडों ने गाजर मली की तरह काटना शुरू कर दिया है । पलिस और फ़ौज उन गुण्डों की सरदार बन बेठी है । लूर्पाहु करने में बराबर उनका हाथ बैंटा रही है । बहुत गम्भोरतापूवक बुजुग नें उत्तर दिया । प्तब तो मुभ्हे जाना दी होगा । कहकर श्राज़ाद खड़ा हो गया | श्पने तघूरे वस्त्र पहने और व तुरन्त ज़ीने से नीचे उतर गया बुजुगं नौकर मालिक मालिक ाका-ग्राका चिल्लाता इुद्रा रह गया परन्ठ आज़ाद ने मानो .दुल्ध सुना दी नहीं । चह्द विद्य त की गति से खटाखट करता हुआ जीने से नीचे उतर गया. और सीधा अपनी रैराज के पास प्हूँच कर उसने मोटर बाहर निकाल लो । मोटरकार एक क्षण में पौ-पों करके हवा से बातें करने लगी श्रौर त्आज़ाद ्रपने इच्छित लदय पर पहुँच गया । बस्ती पर गुरु का साम्राज्य था । कितने ही शव पटरी पर इघर उधर पड़े थे श्र उन विशाल श्र्ालिंकाओ्ों का सामान जो लूट से बचा था ्रग्नि देवता के हवासे किया जा रद था । ्राज़ाद की कार. सीधी शांता की कोठी पर पहुँच गई । कोठी चारों ओर से लुटेरों ने घेरी हुई थी ।. वरांडे और बग़ल के दो कमरों से दाग की लपटें निकल रहीं थी । कोठी के प्रधान द्वार टूट चुके थे | बहुत से बदमाश केवल माल दसबाब लूट कर टी जाने में संलग्न थ। शांता के पिता छुरे के शिकार हो चुके थे आर नौकर की एक मुशटणड से हाथापाई हो रद्दी थी । श्राज़ाद के कार से उतरते हो एक बदमाश ने पीछे से दाकर उस नौकर के पेट मैं छुरा मौक दिया । वह भी लड़खड़ाता हुआ पूंथ्वी पर गिरकर मृत्यु को प्रात हो गया । पस्बरदार बदमाशों कार से उतरता हु ्राज़ाद बोत्य । इस्लाम के . नाम पर दारा लगाने वाले गुण्डो टहरों मैं अभी तुम्हें मौत के घाट उतारता हूँ? आज़ाद के दोनें हाथों में दो सिालवर थे और उसने दोनें से दो. गोटियाँ इस प्रकार छोड़ी कि दो बदमाश तड़प कर घराशाई हो गए. । उनका गिरना था कि भीड़ काई की तरह फट गई और आज़ाद सावधानी से कोठी के श्रन्द्र घुसता चला गया ।




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