चतुर्वेदी संस्कृत - हिंदी कोष | Chatuvedi Sanskrit Hindi Kosh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शस- लिड को न. छोड़े । विशेषण का यह निधम है कि बह विशेष्य के लिन के श्रंदुसार हो जाता है परन्तु कप्तिपय शब्द ऐसे हैं जिन का हिड नियत है । जहा ( ख्री ) शकशिम्नी नामक शषध | करा । कारिकच्छुक । जा (खी.) माया। त्रिगण बिशिटट प्रकृति । बकरी । अज्ञागरः ( पुं. ) भूभ्राज नामकी श्रो्षषि | भगरा । ( नि ) जागरण शुर्य । जाजी ( त्री. ) काला जीरा । सफेद जीरा । ब्रज्ञाज्ीचः ( पुं-) जिसकी जीविका बकरे बकरियों से हो । अजातककुद (पुं-) बैलों की श्रवस्था विशेष । थोड़ी उमर का बेल । बच्छा। बछड़ा | झजातशच्ु ( पं. ) युधिष्टिर । ये किसी से शत्रुता नहीं करते थे इस कारण इनका नाम ्जातशत्रु पड़ा । व््रज्ञातिः ( खी. ) श्रदुपत्ति । कार्य कारण की श्रनुपपत्ति । (नि. ) जन्मराह्रत । झज्ञादनी ( खी. ) इशविशेष । जिते बको खाते हूं । विचटी बक्ष । झ्ज्ानिः (पुं.) जितकीख्री न हो। खीरहित । ब्यज्ञानेयः ( पुं.] उत्तम घोड़ा । अ्मुभक्त घोड़ा ( त्रि ) निभेय । निडर । व््रज्ञापालः ( पुं. ) बको पालनेवाला भेडि- हर । मेषिपाल । अजापिया ( स्री. ) बदरी । बेर । जि (पुं. ) तेज । प्रताप । प्रभुत्ता । जिन ( पूं. ) चमड़ा । चमे । मूगचर्म । श्ाजनपत्रा ( खली. ) जिसके पाँल चमड़े के हों । चमगीदड़ । चमचिट्ठ । अजिनफला (ख्री. ) वृश्नविशेष । जिसके फल बहुत बड़े बड़े होते हैं । व्रज्धिनयोनि (ख्री.) म्रगचर्म के कारण । हरिण हृरिणी धादि । अजिर ( न. ) चघाँगन । चौक । बाजहा ( नि. ) अकुटित । सरल । सीधा | नि चतुर्वदीकोष । १४ झा अधजिह्मग ( पं.) बाण । सपें (नि ) सौधा चलनेवाला | सदाचारी । अजीगर्त ( पुं. ) शुनःशेफ के पिता । इनकी कथा उपनिषदों में लिखी है। दरिता थर निर्दुणता में इनकी बराभरी करने वाला श्राज तक दूसरा नहीं हुआ । अजीत (पूं.) जेनियों का एक तीथेड्रविशेष भावी बुद्ध । ( नि. ) श्रनिर्णित । अपराजिय । जीयणे ( न.) उद्ररोगविशेष । मन्दाग्नि अधिक भोजन दुबेलता श्ादि के कारण यह होग उत्पण होता है । सजीव (नि. ) मूत । मरा हुश्रा । मृतक । ्नेकान्तवादियों का दूसरा पदाथ .। धह चार प्रकार का है पुदूल । ्ाकाश । धर्मा- धर्म | चोर श्रस्तिकाय । अजीवनिः ( सी. ) जीवन का श्रभाव । शाप के रथ में इसका मयोग किया जाता है। झजेय (नि) जोनीता न भासकें । जीतने के श्रयोग्य । झनजेकपादू (पु ) पूर्वाभाद्र पद नकषन । संद्र विशेष का नाम । क्योंकि इसका पेर बकरी के पैर के समान है । छाज़ का ( स्री ) नाद्कोक्ति में पेश्या । बड़ी नहिन । अज्ञ (त्रि.) जड़ । वेदों के तात्पय न जानने वाला । श्रनपढ़ । श्रविवेकी । मूसी । श्रज्ञात (नि. ) भरज्ञान से युक्त । श्रेविदित । अअज्ञषानमपू ( न. ) विद्या । ज्ञान का शभाव । शान से नष्ट होनेवाला । वेदान्त-परसिद्ध पदाधविशेष । भागवत में श्रज्ञाग के पांच मेद बतलाये गये हैं । तम मोह महा मोह तामिस्र पर अन्घतामिस्र । भागवत में यह भी लिखा है कि सुष्टि के श्रादि में अझा ने इन्हें बनायी यथा । अज्ञानप्रभघः ( पुं.) घज्ञान से उत्पन्न । शपने स्वरूप के यथाथें शान होने के कारण जिसकी उत्पत्ति हो 1




User Reviews

  • rakesh jain

    at 2020-12-03 10:21:36
    Rated : 9 out of 10 stars.
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