स्वतंत्र भारत में शिक्षा | Swatantra Bharat Me Shiksha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारत में शिक्षा की स्थिति विहगावलोकन र्श पर सहायता राशियाँ शिक्षा संस्थाधों को दी जाती हैं । इसलिए इन दो संस्थानों का कहीं भ्रधघिक सीधा श्रोर सुनिश्चित प्रभाव है श्रौर ये भारत की शिक्षा के सम्पूर्ण ढाँचे में सुदृढ़ बनाने वाले सीमेस्ट का-सा काम करते हैं । शिक्षा सम्बन्धी प्रमापों ओर नीतियों में एकरूपता बनाये रखने के लिए काम कर रहे इन उपकरणों को भारत सरकार द्वारा भ्रायोजन श्रायोग (प्लेनिंग कमीदान) की स्थापना से श्रौर भी श्रधिक प्रबल. प्रोत्साहन मिला । भ्रायोजन श्रायोग की नियुक्ति यह मानकर की गयी थी कि यदि जनता के जीवन के स्तर को ऊँचा उठाना श्रौर संविधान के प्रेरक सिद्धांतों को क्रियान्वित करना अ्रभीष्ट है तो केन्द्रीय श्रोर राज्य सरकारों को प्रयत्न का ठीक-ठीक समन्वय किया जाना झावइयक है । क्योंकि झरायोग का कार्य यह था कि वह देश के भौतिक मानवीय श्रौर पूँजी सम्बन्धी साधनों का श्राकलन ( ऐस्टीमेट ) करे श्रौर ऐसी योजना बनाये जिससे उनका सबसे श्रधिक प्रभावशाली भ्रौर सन्तुलित उपयोग हो सके इसलिए श्रायोग को राष्ट्रीय गतिविधि के प्रत्येक क्षेत्र सें मोटे तौर पर एक निदिचित नीति निर्धारित कर देनी पड़ी । देश की ग्रावद्यकताएँ श्रघिक थीं भर तुलना में सावन कम थे इसलिए यह श्रावइ्यक था- कि एक श्रोर तो झप्रताम्रों (प्रायोरिटी) का समुचित निर्धारण कर दिया जाय जिससे उपलब्ध साधनों का सबसे शभ्रधिक प्रभावपूण उपयोग किया जा सके और सबसे प्रधिक तीव्र श्रावइ्यकताश्ों को सबसे पहले पूर्ण किया जा सके श्रोर दूसरी श्रोर सब स्तरों पर कार्यक्रमों का उचित समन्वय किया जाय जिससे दुहराव श्रौर भ्रपव्यय से बचा जा सके । शिक्षा के क्षेत्र में झ्रायोग से प्रजातस्त्रात्मक राज्य की श्रावइ्यकताश्ों को पूरा करने के लिए एक सर्वांगीण कार्यक्रम तेयार किया । यह स्पष्टतया मान लिया गया कि शिक्षा की विभिन्न स्थितियाँ एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध हैं श्रौर इसलिए किसी एक क्षेत्र में तब तक उन्नति नहीं हो सकती जब तक उससे सम्बद्ध भ्रन्य सब क्षेत्रों में भी उन्नति न हो जाय । यह भी स्वीकार कर लिया गया कि देश के विभिव्न भागों की आवश्यकताएँ झ्रोर उनके साघन झ्लग- अ्रलग हैँ भ्रौर उन भागों के सामान्य तथा शेक्षणिक विकास में भी अन्तर है । इसलिए श्रग्रताश्रों श्र लक्ष्यों का निर्धारण करने में नरमी से काम लिया जाना चाहिये । फिर भी यदि राष्ट्रीय प्रयत्न का प्रभावपूर्णं समन्वय करना श्रभीछ्ट




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