भाषा - दर्शन भाग - १ | Bhasha-darshan part - 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाषा कया है किसी भी विषय के बौद्धिक विवेचन में उसकी यथासम्भव ठीक परिभाषा देना झ्रावश्यक होता है इसलिए भाषा-दशन के बौद्धिक विवेचन के हेतु मापा की परिभाषा पर सवप्रथम विचार किया जायगा । भाषा साघारण तथा व्यापक श्रथ में किसी भी जीवधारी प्राणी के भाव या विचार व्यक्त करने तथा साथ ही उसे उसी - जाति के दूसरे प्राणियों के लिए प्रेपणीय बनाने का साधन है । विशिष्ट अथ में भाषा किसी विशिष्ट काल में किसी देश-विशेष कीं मनुष्य-जाति में उसकी बवागिन्द्ियों द्वारा झ्भि- व्यक्त तथा उसकी श्रवणेन्द्रियों द्वारा प्द्दीत वह परम्परागत एवं स्वस्वीकृत साधक ध्वनि-सम्टि है -जिसकी एक विशिष्ट ध्वनि-प्रशाली तथा रूप-साघना हो । उच्छिन्न अथ में भाषा का प्रयोग मनुष्य-मनुष्य के बीच परबोधा थे झभि- व्यक्ति के झ्रन्य साधनों के लिए. भी होता है जैसे सांकेतिक भाषा लिखित भाषा शिलालेखों की माषा मंडी की भाषा क्लिक ध्वनियों की भाषा स्पेरेंटो ादि कुत्रिम भाषाएँ रेडियो आदि यंत्रों की भाषा इत्यादि । उपयुक्त तीनों प्रकार की परिभाषाशओं में माषा के विभिन्न प्रयोगों का समावेश हो गया है किन्तु भाषा-विज्ञान में भाषा की द्वितीय परिभाषा के अन्तगंत श्ानेवाली भाषा पर ही विचार होता है जिसके तीन लक्षण उपर्युक्त परिभाषा द्वारा ज्ञात होते हैं । १--भाषा-विज्ञान के शन्तगंत विवेचित भाषा किसी विशिष्ट काल में किसी देश-विशेष की मनुष्य-जाति में पूव विकास की प्रक्रिया से उद्भूत एक माघा-विशेष होती है उसकी ध्वनि-प्रशाली तथा रूप-साधना विशिष्ट कोटि की होती है वह परिवतनशील प्रकृति से भरी रहती है अतः उक्त प्रकार की भाषा के सम्यक्‌ परिशीलनाथ विविध विद्वानों द्वारा की गई उसकी परिमाषातओं पर विचार किया जाता है -- १. वेयाकरणों की दृष्टि से परिभाषा--वैयाकरणों ने भाषा की परिभाषा व्याकरण के तत्वों के झ्राधार पर की है । उनके मतानुसार भाषा मुख्यतः किसी भाषा-विशेष के व्याकरण सम्बन्धी ध्वनियों पदों धाठुतओं ग्रत्ययों बाकयों एवं श्रर्थों आदि की एक व्यवस्थित समष्टि है । इस परिभाषा में माषा के मूल अंगों पर दृष्टि है ।




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