विकास (प्रथम भाग ) | Vikash Part 1

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Vikash Part 1 by प्रतापनारायण श्रीवास्तव - Pratap Narayana Shrivastav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विकास ह दे 'न करती थी। परंतु हिंदी-मिडिल पास करने के बाद गिरिज्ा ने अपना संपूर्ण बल्ल लगाकर उसका घर के बाहर निकलने का मांगे बंद करं दिया । पंडित मधुसूदध भी उसके विवाह का आयोजन करने लगे । पंडित मधुसूदन की झार्थिक दशा कुछ सुघरी थी, मगर ऐसी न थी कि चार-पाँच इज्ञार रुपए लगाकर उसका विवाह करते । उनकी एकांत कामना थी कि वह अपनी प्यार की साधवी का विवाह किसी संपन्न घर में करें, जहाँ उसके জীন্বন का विकास पूर्ण रूप से हो । उन्होंने आस-पास के सब शहरों की धूल छान ढाली, लेकिन सन के ' क्तायक्त पात्र कहीं नहीं मिक्षा । एक दिन वह बरेली से लौट रहे थे कि अचानक उनकी गदी एक दूसरी गाढ़ी से लड़ गई, और वह माधवी के विवाह का अरमान लेकर इस संसार से प्रस्थान कर गए ! माधवी की मा भित्निकी आँखों के सामने अंधकार छा गया, और विधाता काक्र परिष्प धुश्चिक-दंशन से भी अधिक श्रास-मनक हो गया । विधवा गिरिजा की सुसीबतों में कोई द्वाथ बदाने के लिये तैयार नहीं हुआ । गाँव की बूढ़ी औरतों ने इस विपद्‌ का कारण माघबी আহ उसकी शिक्षा को बताकर बस दुखी परिवार के साथ सहालु- भूति प्रदर्शित की । गिरिजा उसे सुनकर और रोने लगती । धीरे-धीरे वह माध्वी कौ रोर से विरक्त होने लगी। परंतु उसके कौमारय ने उसे निर्श्चित हो कर बैठने नहीं दिया। वह यथाशोघ्र साघवी का हाथ पीला. करने का आयोजन करने लगी । परंतु अभागिनी माधवी को कोई भी अपने घर लाने के किये तेयार व द्वोता था | क्‍योंकि गाँववाल्ों ने उसे अमंगल का रूप पहले हो घोषित कर ভা था, और वे ज्ञरा-सा अवसर सिलने पर उल्लकी भावी सखुरालवालों पर विपदू पढ़ने की _ अविष्य-वाणी करने से न चूकते थे । ज्यों-ज्यों भाधवी के विवाह में देर होती, व्यों-स्पों गिरिजा माचवी की और से विरक्त होती नाती




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