प्रश्न | Prashn

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Prashn by श्री दुलारेलाल भार्गव - Shree Dularelal Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ प्रश्न युवतियों को व अनुचित रीति से भकॉकता दो अथवा छुड़छाड करता हो यह बाव न थी। किन्तु सददसा किसी को सामने देखकर बह आँखें भी न फेर ले सकता था। इसे बह झादशंवाद का ढोंग समझता था । रेखु इस सीमा तक न जा सकती थी । लोक-लज्जा का भय माता का डर ऊपर से स्त्री होने का देवी अभिशाप पर ऊपर से दोनों चाहे जितने अंतर पर हों भीतर-ही-भीतर उनके हृदय अज्ञात फूप से एक दोरहे थे | दोनों समकते थे श्रनुभव करते थे कि इस प्रेम का अन्त बड़े भीषण रूप में होगा निराशा वियोग और परिताप की दुःसद्द उ्वाज्ञाएँ उन्हें जला डालेंगी पर वे विवश थे | प्रेम हदय का सौदा है और हृदय पर अधिकार रखना कक १. बिरले ही व्यक्तियों के मान की बात है । गर्मी के झुच्सानेवाले दिनों में जिन्होंने काशी के दशा- श्मेघ-घाठ की संध्या-समय शोभा देखी है ये जानते हैं कि दिन-भर के परिश्रम से थके बाबू लोग किस श्रकार उस बोर भागे जाते हैं । सुरेश श्रब तक घर में बेठा था। किन्तु जब माता घर के काम-धन्घों में लग गई छोर बहुत पुस्तक लेकर बैठी तो वद्द भी बैठे-बैठे ऊब उठा। सोचा कीं घूम ाउँ । कपड़े पहने और श्राइने के सामने खड़े होकर बाल ठीक करने लगा । मालती ने देख लिया और टोक बेठी-- मैया कहाँ जा रहे हो? चौक जाना तो मेरे लिये लेस लेते आना पैसे पीछे दे दूँगी |




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