दरबारी संस्कृति और हिंदी मुक्तक | Darbari Sanskrit Aur Mukktak

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Darbari Sanskrit Aur Mukktak by त्रिभुवन सिंह - Tribhuvan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ख॒ पू० रग्प्या विषय सध्यक्राठीन द्रधारी सभ्यता में हिन्दी मुक्तकों का विकास ध्ण ७1 मध्यकाछ दवारो हे पद हिन्दी साहित्य का मध्यकाठ दर सामंती सर्कृति ः 9 सामाजिक स्थिति द मुगल परिवार और दरबार में वैमब तथा ऐपररप की प्रधानता के भ ट विंलास तथा इन्द्रिय छोड़पता ध पु दरबारी रौनक में कढछा और रास्कृति का थिकास तथा उस पर विदेशी प्रभाव रहे श् हिन्दी मुक्तक काव्य और मध्यकालोन दखार ७८ दिन्दो सुक्ताक काव्य परम्परा पर सरक्ञाति साहित्य का प्रमाय ५९ हिन्दी सुक्ताक काव्य की प्रमुत्न य्रदत्तियाँ हर ६ हिन्दी के घामिक सुक्तक कर ६६ तुलसीदास कर्क रैक कक ९ बिहारी फैल रद सके ७9 मतिराम ते को ४० रसनिधि कक 9 कक के कब रन बस लिन तल ५ ७३ हिन्दी सतसई परम्परा कक रा उरू--ट८ऊ सवा कि थ ७२ पूववर्तो साहित्य का हिन्दी सतसइयों पर प्रभाव ८० शा रिक प्रवृत्तियां कल हक शक ८८-११८ शड्ार का प्रवेदा ०+ ० ० ९०७ हिन्दी काव्य में राधा तत्व का प्रवेश मर ९६ शा तत्व को प्रभावित करने वाछी धार्मिक प्रब्त्तियों... १०३ । ज्ञार के उभय पक्ष सर अं. श्ण्ट संयोग या संभोग श्ड्ार भ्क ०० १०९ विप्रल्मम श्वज्ञार या वियोग श्रज्ार + ० ११३ वियोग श्रज्ञार की व्यापकता .. कक ११३ वीर रस प्रधान गर्वोक्तियाँ शक कर ११९--१२० पृथ्वीराज ब्न्क ७ ७ कक ११९ दुरासा जी शक एल ०० १२० बॉकीदास +०० ह बिक थक १२० सई मर बीर सतसई ० कर १२०




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