अर्थशास्त्र | Arthashastra
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.08 MB
कुल पष्ठ :
265
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ख॒
ही ज्यादा सम्पत्तिशाली है । इस चिचारसे वे चाहते थे कि
ऐसी क्रीमती घातुएँ बाहर जितनी कम उतना ही अच्छा
.और इसी छिये व्यापारपर भौंतिौतिके वनावटी प्रतिवन्ध
लगाये जाते थे । ऐसा होनेका कारण यह है कि रुपयेसे सस्प-
त्तिका नाप होता है । किसी मनुष्यकी वार्षिक उत्पन्नका जब
हम विचार करते हैं तब यहीं विचार करते हैं कि उसकी इतने
रुपयेकी वार्षिक आय है और किसी देशके आय-व्ययके विप-
यमें भी यद्दी कहा जाता हे अमुक. इतने करोड़ रुपये
साठकी आय हैं ओर इतने करोड़ रुपये साछका खर्च । वा-
स्तवमें देखा जाय तो रुपया सम्पत्तिकी एक संज्ञा है । और;
संज्ञाको ही संज्ञी मानठेनेकी उन लोगोंने भूठकी जिन्होंने रुपया
आर सम्बत्तिको एक ही माना । वे दोनोंकें भेंद्को नहीं समझे ।
इस कारणस आर इसी तरहके और ओर कारणोंसे रुपयेके
सच्चे स्वरूपको छोगोंने नहीं समझा । इस बातको सप्रमाण सिद्ध
कंरनेके छिये जिन श्रजाओंने चांदीके सिक्के नहीं चलाये और
अपना व्यवहार चठाया उनके दूप्रान्त देना ठीक होगा । इस
कामके छिये हमें इतिहास देखना चाहिए । एक समय ऐसा
था कि चीन चाहकी डिवियाओको रुपयेकी ज़गह काममें ला-
'ती थी । अबतक कई हिन्दुस्तानी .सिकेकी . जगह. कोड़ियोंको
काममें ऊाते. हैं । कितने ही अरव रुपयेका काम उंटॉसे लिया
करते थे।-इन लोगोंकी भूल वेसी ही हुई जैसी रुप्रयेको सम्पत्ति -
को इनका ख़ियाल था कि. जहाँ चायके डिच्वे
यहीं, जहां -कोड़ियां नहीं; या जहां ऊंट नहीं वह देश कोर
“हु। इन्हें. कभी यह जानना .होता था कि अमुक देश कितनां
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