अरस्तू का काव्य - शास्त्र | Arastu Ka Kavya - Sastra

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डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra

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महेन्द्र चतुर्वेदी - Mahendra Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न कि. तो यह स्पष्ट है कि चासदी ( महाकाव्य की अपेक्षा ) उत्कृष्टतर कला है । ( काव्य-शास्त्र ७४ ) उपर्युक्त उद्धरणो से यह सर्वथा स्पष्ट है कि-- (१) काव्य एक कला है। (२) एक ओर सगीत चित्र आदि ( ललित ) कलाए और दूसरी ओर महाकाव्य त्रासदी आदि काव्य-कला के विभिन्न रूप अनुकरण के हीं प्रकार है अर्थात्‌ समस्त कलाओ का मुल तत्त्व एक ही है--अनुकरण। (३) इस प्रकार कला जाति है और काव्य प्रजाति जिसके सहाकाव्य त्रासदी आदि व्यष्टि-भेद हु । (४) इन भेद-प्रभेदो के आबार तीन है--विषय माव्यम और रीति। काव्य को आत्सा उपर्युक्त स्थापना के अनुसार अन्य कला-रूपो की भाँति काव्य की आत्मा है--अनुकरण । अनुकरण यूनानी काव्य-हास्त्र का विशिष्ट शब्द है जिसकी विस्तृत व्याख्या अपेक्षित है। अनुकरण-पिद्धान्त अनुकरण यूनानी दाब्द मीमेसिस के पर्याय रूप में प्रयुक्त किया गया है। हिन्दी मे वास्तव मे यह अगरेजी झब्द इमीटेशन का रूपान्तर होकर आया है। यूनानी भाषा मे कला के प्रसंग में अनुकरण का व्यवहार अरस्तु का मौलिक प्रयोग नहीं है--अरस्तु से पूर्व प्लेटो इसी के आधार पर काव्य का तिरस्कार कर चुके थे । उनका आरोप था कि एक तो भौतिक पदायें स्वय ही सप्य की अनुकृति है--और फिर काव्य तो इन भोतिक पदार्थों की भी अनुऊुति होता है। अतएव अनुकरण का भी अनुकरण होने के कारण वह और भी त्याज्य है। इस प्रकार प्ढेटो ओर प्ढेटो के भी पूर्ववर्ती यवन आचार्यों ने अनुकरण शब्द का प्रयोग स्थूल अथ मे नकल या यथायत प्रतिकृति के अथ में किया हैं। उनके अनुसार निभिन्न कलाकार जपने-अपने साब्यम- उपकरणों के अनुसार भौतिक जीवन और जगत का अनुकरण करते है-- चित्रकार रूप और रग के द्वारा अभिवेता बेशभूपा आगिक चेष्टा तथा वाणी आदि के द्वाना और कवि भाषा ट्वारा। अरस्तू ने इसी प्रवरलित दाब्द का ग्रहण किया किन्तु उससे नया अर्थ भर दिया ।




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