गुजराती ललित निबंध | Gujarati Lalit Nibandh

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Gujarati Lalit Nibandh by Pravin Darji - प्रवीण दरजीश्री गोपालदास - Shree Gopal Das

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श्री गोपालदास - Shree Gopal Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका / पंद्रह हटकर यहां निबंध सफल हुआ है । इस प्रकार गुजराती ललित निबंध का एक नया स्वरूप सामने आता दिखता है। भाषा को सरल रखकर वक्रता के तत्व से अंतस्थ संवेदन को तथा उसके धारक मैं को प्रकट करती निबंध शैली भी ध्यान देने योग्य बनी है। ललित निबंध को अनेक तरह से संवारने का काम इनके सिवा अन्य गद्यकारों ने भी किया है। शियालानी सवार नो तड़को संग्रह में वाडीलाल डगली की कितनी ही श्रेष्ठ रचनाएं हैं। इनकी विशेषता यह है कि ये तथ्य तथा तर्क को साथ रखकर लेखन करते हैं फिर भी उस रचना को उनका स्फूर्तियक्त गद्य जल्दी टूटने नहीं देता । विचार विहार बनता है। ऐसा विहार शियालानी सवार नो तड़को शीर्षक रचना में अच्छी तरह हुआ है। शब्दातीत शीर्षक संग्रह में भगवतीकुमार शर्मा के प्रयल भी उल्लेखनीय हैं। चंद्रकांत शेठ की तरह वे भी कई बार विषाद को केंद्र में रखकर रचना का विस्तार करते हैं। अलबत्ता यहां कौशल भिन्न है। बचपन उनका स्मृति साहचर्य तथा विषयानुरूप अध्याय उनकी रचना में सहज रूप से आते और आकार धारण करते हैं । कभी कभी वे रचना को नम्रता का पुट भी देते हैं। आठवें दशक में निबंध को भर्‌पर प्रतिष्ठा दिलानेवाले इस निबंधकार की नदी-विच्छेद जैसी कितनी ही रचनाएं स्मरणीय हैं। पिछले कुछ वर्षों में ललित निबंध के क्षेत्र में थोक रचनाओं का ज्वार आया। इसके पीछे एक प्रत्यक्ष कारण पत्रकारिता है। कितने ही निबंधकारों ने व्यक्तित्व के मोहक अंशों को व्यक्त करती मधुर गद्य छटा बिखेरती रचनाएं बीच-बीच में दी हैं। सुरेश दलाल गुणवंत शाह हरींद्र दवे ज्योतिष जानी विष्णु पंड्या अनिल जोशी जयंत पाठक आदि के नाम इस संदर्भ में तुरंत याद आते हैं। सुरेश दलाल और गुणवंत शाह की रचनाओं में विषयों की अंतद्दीन विविधता है। दोनों में कल्पना तत्व भी ठीक-ठीक मात्रा में है। दोनों अपनी रचनाओं में उदाहरण तथा काव्यपंक्तियों का भी काफी प्रयोग करते हैं। दोनों की रचनाएं ललित निबंध के छोर तक पहुंच जाती हैं। सौदर्य का नशा भी उनकी रचनाओं में बहुत बार अनुभव होता है। फिर भी जिसे शुद्ध ललित निबंध कहा जा सके ऐसी रचनाओं की संख्या कम है। गुणवंत शाह के विचारोनां वृन्दावनमां साइलेन्स जोन बत्रीशे कोठे दीवा पूछता नर पंडित झांकल भीना पारिजात कार्डियोग्राम शवगडा ने तरस टूहकानी आदि अनेक संग्रहों में गद्य की रसिकता ध्यान आकर्षित करती है। वृक्षनी मातृभाषा मौन शीर्षक से प्रकाशित इस संग्रह में संकलित ललित निबंध उनकी इस तरह की निबंध रचना का द्योतक है। सुरेश दलाल के मारी बारी थी साव अकेलो दरियो मारो आसपासनो रस्तो पगलांधी पंथ एक फूट्यो समी सांज ना शांमियाणा माँ मोजा ने चींघवा सहेला नथी जैसे अनेक संग्रह निरूपण की कोई न कोई विशेषता के कारण आकर्षित करते हैं। अलबत्ता हर बार निबंध का तत्व उनके सर्वांग के साथ नहीं के बराबर प्रकट हुआ है। मुंबई अैटले मुंबई अटले




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