भागवत दर्शन | Bhagwat Dershan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घ तथा ृहदारण्यक भ्रादि कई उपनिषदों मे भी पुराण शब्द का प्रयोग मिलता ई है। हो सकता है काला तर मे पुराण का ऐतिहासिक पक्ष निबल पड गया हो श्रथवा इतिहास को पुराण से श्रलग ही एक श्रग माना जाने लगा हो । वायुपुराण मे इतिहास श्र पुराण दोनो को ही वेदज्ञान मे सहायक बताया गया है-- इतिहासपुराशाम्या वेद समुपव्‌ हयेतू । सभा मुख्य पुराणों में पुराण के पाँच लक्षण गिनाए हैं भ्रोर वद्यानुचरित को पुराणों का झभिन अग माना है । यह वच्चानुचरित इतिहास का ही विषय है । यह कहना बडा कठिन है कि पुराण सहिता का श्रादि रूप क्या था तथा उसका आ्रादि प्रणेता कौन था हो सकता है कि यह सहिता भी ब्राह्मण और श्रारण्यक ग्र थो की भाति ऋषिप्रोक्त ही रही हो तथा द्वापर युग में बेदव्यास जी ने भ्रय भारतीय वाइमय के साथ पुराण सहिता का भी सपादन किया हो । विष्णुपुराण में इस विषय का एक सकेत भी मिलता है । शायद प्राचीन पुराण सहिता के श्रठारह भाग रहे हो जिनके श्राघार पर कालान्तर मे भ्रठारह पुराणों का निर्माण हुमा और उनके परिशिष्ट रूप म उपपुराण बने । पुराणों के सुक्ष्म श्रध्ययन से पता चलता है कि सब पुराणों में प्राय एक से ही विषयों की पुनरावत्ति की गयी है ग्रौर किन्ही पुराणों के तो श्लोक भी ज्यो के त्यो मिल जाते है । परन्तु प्रत्येक पुराण का उद्देदय प्रथक्‌ प्रतीत होता है पर सम्भवत इसीलिए प्रत्येक पुराण मे कोई न कोई प्रसंग विशेष रूप से श्रा गया है। धर्म के पुनरुत्थान युग में जब साम्प्रदायिक प्रचार ही पुराणों का उद्देश्य हो गया तो उनमे परिवतन श्रौर परिवद्ध न की कोई सीसा न रही । हिन्दू पुराणों के प्राघार पर भ्रनेक बौद्ध भर जेन पुराण भी निर्मित हुए तथा पुराण रचना की. यह प्रक्रिया १४५ वी १६ वी शताब्दी तक चलती रही । एक ही नाम के कई पुराणों की रचना भिसन भिन्न प्रदेशों मे हुई । यह सब कुछ होते हुए भी पुराणों के ऐतिहासिक महत्व को कम नहीं किया जा सकता । सामान्य रूप से हिन्दू पुराणों की ब्राह्म शव दाक्त श्र वेष्णव चार कोटियाँ हैं तथा सभी पुराणों में दो प्रकार की कथाएँ मिलती है । १ सिद्धान्त प्रतिपादन की हृष्टि से कहीं गयी काल्पनिक कथाएँ अथवा श्रन्योकि या प्रतीक रूप में कथित कथाएँ । २ ऐतिहासिक झाख्यान । ऐतिहासिक श्राख्यानो की दो मुख्य परम्पराएँ है--ब्राह्मण परम्परा तथा क्षत्रिय परम्परा । पुराणों का काल क्रम से वर्गीकरण एक दुष्कर काय है परन्तु इसमे कोई सदेह नही कि पुराण साहित्य वद्ावलियो श्रौर परम्पराझ्ों की एक निधि हे । उन सबको सम्बद्ध करके भारत वष का क्रमिक इतिहास प्रस्तुत किया जा सकता है । घम प्रचारकों के हाथ मे पडकर पुराणों का रूप बिलकुल ही बदल गया और उनका सूल उद्देश्य धम का व्यापक प्रचार ही बन गया । घम प्रचार की हृष्टि से मध्ययुग मे भागवत धम को ही विशेष महत्त्व मिला तथा धरधिकाद पुराणों में भागवत घम की ही प्रतिष्ठा हुई। भागवत बम वैष्णव घम का ही दूसरा नाम हैं जिसका मुल है भ्रहिसा का भाव तथा जिसके प्रधिष्ठातू देव विष्णु भगवान्‌ हैं। भगवान विष्णु तथा उसके भ्रवतारो की चर्चा ही वैष्णव पुराणों का. विषय रहा है । भगवाचू विष्णु के अवतारो मे कृष्णावतार को सर्वोपरि माना गया है । विभिन्‍न परिस्थितियों डे कं के - स्टररी लय भ नकॉनि |




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