मांसभोजनविचार के द्वितीय भाग का उत्तर | Maansabhojanavichar Ke Dvitiiy Bhag Ka Uttar

Maansabhojanavichar Ke Dvitiiy Bhag Ka Uttar by पं. भीमसेन शर्मा - Pt. Bhimsen Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ललकृविसिलिलिकिडवेलिवेिकदके विविनक्वेनिट परयललाक कणिगीए ससयुकलदलापसववदलविसापिदा पदक पक रनएविदलनटडडफिटलडलदटनलपललिलपयॉलपंलदएवसर यापकयाववाययादाकायारणसतयलदवनिदनिददयादयरयदलकललकवयकयदवदादयकिविदोकिकनवीनव द्वितीप्रभाग का उत्तर ॥ छः # अभिजीत रथ लापलपमतापदितपलरपिगर/ पएविपटशसिशमा/ वन सिलिस्वपट के शक जीमे मांसभझया में हिंसाझूप पाप स्त्रोकार कर लिया । इस दूशा में आप बड़े भाई हो गये क्याफि जन्मभर में लो को दूँ. ब्रह्मवारी बनेगा चस के एक सुगचमसे चाहिये तो एक छ्िं- सा का दोष उसे लगेगा शोर सांसभलक जन्मभर में जितने. जीवों का मांस खायेगा उतनी हत्या का दोषभागो होगा । और यदि यह आशप हो कि जैते सगचमे के सस्पादन में पाप नहीं बसे सांसमझषगा में भी नहीं तब हिंसा को घ्े नानना श्र ठढराना पढ़ेगा छौर हिमा का पाप ठहराने वाले मनु आरादि के वचन सब दूषित मानने पढ़ें गे । हम पूछते हैं कि श्राप इतनी दूर क्यों भागे सोधा २ जूते का दू्टान्त क्यों न दे दिया जिस को प्रायः मनुष्य लन्स से स- रण तक घारण करते छीर उपानदू घारण छे लिये घमेशा स्तर मेंनी छाक्ञा है सगचमे तो ब्रह्लचारी बने उस का एक सप्तय काम लगता है । शव हम यह दिखाते हैं कि चमे से काम देने वाले यदि चाहना कर कि दम किसी जीव को स्वयं मारें वा मरवावे जिस से हम का चमे प्राप्त हो ऐसी दशा में सगचमे कया किसी काम के लिये जिस का चाम की चाह- ना हो बह मनुष्य हिसार्प पाप का भागी अवश्य होगा । यदि बहू चमेंसे कास लेने के लिये किसी की हिंसा करना कराना नहीं चाहता तो बह निर्दोष है क्योकि जगत में जितने प्राणी उत्पन्न छोते वे मरते भी प्वध्य हैं उस समय सम सखुतशरोरों में को २ वस्त उपकारो है सस से काम | कननयायरपयननमिगपससिस्स या 2 पपपपपपरिििस्यप अल




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