स्वामी श्रद्धानन्द जी महाराज के धर्मोपदेश भाग 2 | Svaamii Shraddhaananda Jii Mahaaraaj Ke Dharmopadesh Bhag 2

Svaamii Shraddhaananda Jii Mahaaraaj Ke Dharmopadesh Bhag 2 by स्वामी श्रद्धानन्द - Swami Shraddhanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ह. ब्रह्मययसूक | ६ ककनलापसवववफापाल | काल डनननकरा ना पलक का हनन कक कलाधमनम कक यालन्टकनकयणाकनकक अन्य नह बिन के बनननन न नमन न... कक नल कल नामफक जेल जािनककेनफेफपाककककाकागगगगर ब्रह्मयय के तीन दूं से मतलब मालूम होता हे । प्रथम २४ बच तक का अह्मययं त्रत है जिसे पूरा करके ब्रह्मयारी व ( अर्थात्‌ उत्तम गुणों को अपने अन्दर वास कराने वाला ) बनता है । परन्तु यह निरुष्ट ज्रह्मचय है । जब बसु प्रह्मचारी को घर जाने को आज्ञा आचाय देता है तो श्रद्धादेवी उसे प्रेरित कर के उस से कहलाती दै-- भगवन्‌ अभी तो में उत्तम गुणों का वास कराने वाला ही बना हूं। झभी प्रलोभन मु्ते गिरा सकते हैं । मुक्के विशेष साधन का समय दीजिए | शिष्य की योग्यता को देख कर आचाय फिर आज्ञा देते हैं । तब ४४ वष की आयु तक तप पूवंक विद्याभ्यास करता हुआ प्ह्मचारी रुद्र संज्ञा का अधिकारी बनता है । उसकी वह प्राथना स्वीकार होती है जो उसने आश्रम में प्रविष्ट होते ही आचयाय से की थी-- मा तनु श्रश्मा भवतु मेरी बनावट शरीर श्ौर मन चट्टान की तरह टूढ़ हो जावे । तब वह ऐसा बलिध् हो जाता है कि विषय और पाप उसकी बनावट से टकरा टकरा कर छिन्न भिन्न हो जाते और रोते हैं । उन्हें झलाने का हेतु होने से घ्रह्मचारी रुद्र बन जाता है | फिर भी उसका पूण प्रकाश नहीं हुआ । जब थिषय भौर पाप समीप आते रहें जब अन्घेरा आस पास घूम सके तब भी गिरने का भय थना ही रहता है । इसी लिए ऐसखे सुबोध ब्रह्मचारी को जब गुरु समावतन को आज्ञा देते हैं तब वह फिर हाथ जोड़ कर विनय करता हे-- भगवन्‌ अभी अन्धकार ने मु्े घेरना नहीं छोड़ा । आत्मा निख्चिन्त नहों हुआ इस पवित्र भाश्रम द्वारा सावित्री माता के गभ में सुरक्षित हो कर कुछ काल और निवास करने को भाज्ञा मुझे प्रदान कीजिए 1




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