सनातन धर्म और आर्य्य समाज | Sanaatan Dharma Aur Aaryy Samaj

Sanaatan Dharma Aur Aaryy Samaj  by गंगाप्रसाद उपाध्याय - Gangaprasad Upadhyaya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श४ सनातन धम और श्राय्य समाज नहीं । वह सदा चमकता रहता है । इसलिये उसे भूल जाना ओर उसके स्थान पर नये नये रूप गढ़लेना ठीक नहीं है । आयय समाज श्री रामचन्द्र और श्री क़ष्णचन्द्र का श्रादर करता हैं वे हमारे पूज्य थे । उन्होंने ्रपने सदू जीवन से हमको माग दिखाया । उस पर हम का चलना चाहिये । उनके माग पर न चलकर उनके नाम की रट लगाना और इनका सा जीवन न बनाकर उनकी मूर्तियों पर फज् फूल चढ़ाना उनका आदर नहीं है असली आदर करने में सनातन धर्मी अर श्राय्य समाजियों में काइ अन्तर नहीं जा भेद पीछे से उत्पन्न हो गया है उसका छोड़ दना जरूरी है । दखों जघ् वेदों का प्रचार था तत्र शिव गणश विष्णणु वरुण झादि सब शब्द कवल उसी एक परमेश्वर के नाम थे । वेद में लिखा हे । एके सदू विधा बहुधा वर्दान्त | ( ऋग्वेद श१६४।४६ ) दृश्वर तो एक ही है उसके नाम बहुत से हें। इश्वर क अनेक गुण और अनेक कम है अतः हर एक गुण शरीर कम का दरशाने वाला अलग अलग नाम होगा । जेसे यदि कोई एक ही पुरुष गुरु भी हो श्रौर डाक्डर भी तो उसकों कभी रुरू कह कर पुकारेगे और कभी डाक्टर कद कर ।




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