समाज सुधार और वैदिक धर्म का आदर्श | Samaaj Sudhaar Aur Vaidik Dharma Kaa Aadarsh

Samaaj Sudhaar Aur Vaidik Dharma Kaa Aadarsh by देवीदत्त भट्ट - Devidatt Bhatt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ समाज सुधार श्र वैदिक धम्म का झादशे इतनी चृद्धि हुई कि तत्कालीन राजा लोग सुवरी की वर्षा करते थे। संसार को एक करने श्और संसार में विश्वबन्धुत्व का साम्राज्य स्थापित करने में सम्राट झाशोक ने जो प्रयल्न किया है उसके लिये पाश्चाय विद्वानों व इतिहास लेखकों का मत इस प्रकार है-- झशोक पहला सम्राट है जिसने सत्य उद्देश्य को लक्ष्य में रख कर मनुष्य जाति को शिक्षित किया । इसने बड़ी भारी सेना और बड़ी भारी शक्ति होते हुए भी सनिक झऔर राजनितिक विजय नहीं की । उसने झपने शौय्यै पराक्रम और वीरता को दिखलाने के लिये किसी राष्ट्र पर आक्रमण नहीं किया किसी देश को तहस नहस करने के लिये किसी राष्ट्र को गुलाम बनाने के लिये सुन्दर नगरों को धूलिसात्‌ करने के लिये श्ाहतों पीड़ितों और दुखियों तथा निस्सहायों के झभि- शाप से भरी प्रथ्वी को झधिक बोमल तथा दुखित मानव समाज को झधिक दुखित नहीं किया । उसने दान के कामों के निरीक्षण के लिये कमेचारी नियुक्त किये सावेजनिक चिकित्सालय श्ौर बाटिकार्य बनाई श्ायुवदिक झऔषा घालयों के लिये बाग बनवाये | प्रजा की शिक्षा के लिये मन्त्ी नियुक्त किये खियों की शिक्षा की व्यवस्था की । उसने धर्मे-विजय की धम्मे मिक्तुश्ओों द्वारा झूम श्र सन्तप्त संसार को प्रेम श्र धर्म का मृत पान कराया | अपने चतुदेश शिलालेख में वह लिखता है -- घम विजय को ही देवताझओं के प्रिय मुख्यतः विजय मानते हैं । ध्मे विजय में जो श्रानन्द है वह बहुत प्रगाढ़ है पर बह




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