दक्षिण - पथ | Dakshin Path

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Dakshin Path by श्री जयकान्त मिश्र - Shri जयकान्त Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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3१1 (झ) सत्यु--परिवार में शोक शोक में विनय श्रौर दर्शन भूल जाते थे शत शरीर को जलाने की प्रथा अन्त्येष्टि क्रिया श्तकों के शव पर मन्दिर और स्तुप बनाने की प्रथा केश कटाने की प्रथाछ वैदिक क्रिया में विशेष नियम श्रादपद्धति बोद्ध सात दिनों का उपवास करते थे उपवास शुद्धि के श्रभिग्राय से नहीं शोक प्रदरशनाथें किन्तु इस उपवास का विनय में निषेघ निवाण-प्राप्ति में बाघा । (रद) समाज का पवे--श्रानन्दोत्सव किसी-किसी पे में कई दिन बोद्धों का प्रवारण-दिवस ( प्रायश्चित्त-दिवस ) यह ग्रीप्म-एकान्त& की समाप्ति के दिन होता था महोपशथ- प्रक्रिया नागरमोथा हाथ या पाँव से रोदने की प्रथा बोद्धों का दूसरा पव--उपवसथ बोद्ध-भिक्षुओं ओर विद्वानों को विशेष रूप से निमन्त्रण देकर भोजन कराने की प्रथा खिलाने का विशेष प्रबन्ध केसे ओर किस समय खिलाया जाता श्रॉगन-घर की. स्वच्छता श्रासन आदि भोजन परोसने की प्रणाली माता हारिती& के नाम थाली सस्प्रागतम्‌& उच्छिष्ट छोड़ने का नियम नहीं भोजन के बाद--स्थविर के सामने प्रेतलोक को लाभ पहुँचाने की विधि भोजनोपरान्त दान करने का नियम विख्यात उपवसथ- पे का न्रिपिटक ग्रन्थों में उल्लेख-प्रसेनजित का उपवसथ उपवसथ करने का इ-त्सिंग का विचार रोक दिया गया । (ठढ) विद्दार--केवल भिक्षुओं के रहने का स्थान नहीं विद्यालय भी विहार दिद्वानों से भरे होते थे सेकड़ों




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