एक महाअभियोग | Ek Mahabhiyog

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Ek Mahabhiyog by एडमण्ड बर्क - Edmund Burkeओंकार शरद - Omkar Sharad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ 2 एक महाअभियोग व्यवहार था और इंडिया बिल को घपले में डालने का प्रयास चल रहा था और सरकार के इस रूख के समर्थन में पालमिंट के अधिकांश सदस्य थे यानी इसे दबाने का ही बहुमत था । लेकिन बकें ने एक उच्चाधिकारी के आचरण की बात उठा कर एक प्रकार से तत्कालीन सरकार और तत्कालीन मंत्रिमंडल के स्वार्थों पर तथा वैधघा- निक अन्याय व भ्रष्टाचार पर सीधा प्रहार किया था । लोगों ने पुन हेस्टिग्स के विरुद्ध प्रस्तुत की जाने वाली कायंवाही को फाक्स के इंडिया बिल के संघर्ष का एक अंश माना । लेकिन बक इन बातों से तनिक भी विचलित नहीं हुआ और भारत के मामले को वह बराबर महत्व देता रहा । बकं ने भारत सम्बन्धी कुछ महत्वपूर्ण कागज-पत्न पार्लमिंट के सामने रखे । हैदर अली द्वारा कर्नाटक को छीनने की बात को उसने अंग्रेजी सरकार की असफलता और अयोग्यता बतायी । इसके भीतर भी उसे भ्रष्टाचार के कुछ कारनामे छिपे दिखाई पड़े । अतः जब गुप्त तथ्यों को उद्घा- टित करते हुए बकें मे अपना भाषण दिया तो लोग आश्चर्यचकित रह गये । बकें को भारत के प्रति संवेदनशील दृष्टि के साथ ही राजनीतिक सिद्धांत भी जुड़े थे । राज- नीतिक सिद्धांतों के लिए तो वह पहले से ही संघर्ष करता रहा है । १७८० में उसने गुलामों के व्यापार पर सिद्धांतवश प्रहार किया था । बके बड़ा सिद्धांतवादी और सत्यप्रिय व न्यायनिष्ठ राजनीतिक विचारक था । राजनीतिक अधिकारों का दुरुपयोग उससे देखा न गया । हेस्टिंग्स के ज़ाजकीय अन्यायों व अपराधों के कारण अंग्रेजी राज्य व ब्रिटिश चरित्र का जितना हनन हो रहा था उससे उसके दिल में हाहाकार मचा था । भारत में हेस्टिग्स के चौदह वर्ष के शासन-काल में उसे सर्वत्र अपराध ही मपराध दिखाई पड़ा । उसका दिल किसी प्रकार यह मानने को तैयार न था कि राजाओं व॒नवाबों का यह प्रतिष्ठित देश पुरानी धार्मिक परम्पराओं का यह देश जहाँ के निवासी मानवता के लिए जीते हैं और मरने पर भी संतोष अनुभव करते हैं वहाँ के करोड़ों किसानों और लाखों सम्मानित परिवारों वहाँ के धमेनिष्ठ ब्राह्मणों और मुसलमानों को अवध के वैभव को बनारस की पवित्रता को और ईश्वर के उस सुन्दर निर्मित बाग को अंग्रेजी राजकीय लालसा के लिए नष्ट कर दिया जाय । बकं के प्रयत्नों के बाद भी पालमिंट किसी प्रकार भी हेस्टिग्स पर महाअभि- योग का मामला चलाने को तत्पर न थी जब तक कि पिट इसके लिए सम्मति न देता और पिट ने अचानक इस मामले को चलाये जाने के लिए सम्मति कंसे प्रदान की यह आज तक इतिहास का एक रहस्य ही बना हुआ है । पालमिंट कभी भी महाअभियोग का यह मामला चलाने की सम्मति न देती यदि बकें वहाँ न होता और अपनी सुझ-बूझ तर्क और शक्ति तथा ज्वलंत प्रतिभा का उपयोग न करता और उसे फाक्स शेरिडन विढ॑म ग्रे जैसे सहयोगियों का सहयोग न मिला होता ।




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