मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचना | Meri Shreshth Vyangya Rachna

Meri Shreshth Vyangya Rachna by प्रेम जनमेजय - Prem Janamejaya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वे सम्मान के लिए नहीं उठे । उनके एक सरकर्दा मेम्बर ने बताया कि उनके कवि सम्मेलन के दस्तूर के मुताबिक वहां से केवल श्रोता ही उठते हैं और वे स्वयं तो सम्मेलन के अंत पर ही उठते हैं । अतः बैठे-बैठे ही अभिवादन हुआ । दस-बीस लोग और भी आए और सम्मेलन प्रारंभ हुआ । सर्वप्रथम एक कवि मुख़ातिब हुए हमें श्रोताओं की कम देखकर मायूस नहीं होना चाहिए क्योंकि हमारी कविता कॉमिटेड- प्रतिबद्ध नहीं और हमारी कविता न ही अड्रैस्ड संबोधित है। इसलिए इस थोड़ी हाजिरी को श्रोता-संकट तसव्वुर न किया जाए । हमें श्रोताओं की दाद नहीं चाहिए उनसे प्रार्थना है कि वे इस हरकत से बाज आएं । फैसे नॉन-कॉमिटेड नॉन-अट्रैस्ड ओपनिंग की हम श्रोता ताब न ला सके और सभी को एक साथ वाक आउट करना पड़ा । अपनी इज़्जृत को महफूज़ करने के लिए यह माइल्ड प्रोटेस्ट लाज़मी हो गया था। हमारे पड़ोस में एक नये किरायेदार आए हैं । पति-पत्नी दोनों ही कवित्ता का शौक रखते हैं । अपना लाड़ला उनसे काफी घुलमिल गया है और उनके वहां बड़ा ही होमली महसूस करता है । पिछले संडे इस कपल को उसने अपने यहां इनवाईट किया था । जलपान के बाद गोष्ठी का कार्यक्रम था । शिष्टतावश हमें सपरिवार उसमें भाग लेना पड़ा । गोष्ठी का श्रीगणेश मुन्ने की नयी कविता से हुआ जिस पर वे मियां-बीवी सिर हिलाते रहे । कविता का असर मुन्‍ने की मां और दादी पर भी ख़ूब शिद्दत से हुआ। वह बोल रहा था-- रावण के दस सिरों पर लगे गधे के सिर का में कटा हुआ धड़ हूं आओ पुराण-लेखकों बेईमानों रावण तो शक्तिशाली था उसने उंगली पर कैलाश उठाया था मुझे जीवित ही सारे के सारे सिंगल पीस को उसके सिर पर क्यों नहीं बिठा दिया रावण को उससे कभी एतराज़ न होता कया मैं सारे का सार उसकी मुर्खता से थादी पड़ता? आमंत्रित कपल हमारे मुन्ने के इतिहासबोध से दंग रह गए थे। उसकी पौराणिक व्यंजनाएं माकख़िज थीं । अब कपल की बारी थी । पहले पति महोदय ने कविता पढ़ी- 14 / मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य-रचना




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