जब सूर्योदय होगा | Jab Suryayodya Hogaa

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Jab Suryayodya Hogaa by श्री दुलारेलाल भार्गव - Shree Dularelal Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जब सूयोदय होगा प्रथम परिच्छेद विषय-प्रवेश टन्‌-टनू-टन्‌ करके दादर ( बंबई ) के पोर्टगीज़-चरचे के टॉवर की घड़ी में बारह बजे । पास की एक साधारण-सी हवेली के दूसरे मंज़िल की कोठरी में बेठे हुए मनोहरलाल कछु लिख रहे थे। उनकी लेखनी मपाटे से चल्न रही थी । अंत के दो घंटे सुनते ही उन्होंने सामने रक्‍खी हुई टाइंपीस की झोर देखकर आश्चय से कहा-- बारह बज गए झाधघीरात हो गई ? ये चार घंटे बॉत-की-बात में डी निकल गए । लिखी हुई कहानी के मेज़ पर बिखरे हुए काऱज़ों को उन्होंने इकट्ठा किया और विचार करने ल्लगे-- शाठ बजे से झब तक केवल चालीस ही पृष्ठ हुए £ सबेरे से मैं बराबर लिख रहा हूँ तो . भी शमी तक यह कहानी आधी भी न लिखी जा सकी । पइच्ने तो में ऐसी पुस्तकें एक-दो दिन में ही पूण कर लेता था फिर अब ऐसा क्यों होता है ? क्या लिखने में तो मैं गड़बड़ नहीं करता १ इस प्रकार थोड़ी देर विचार करने के बाद उन्होंने फिर ललेखनी कितु झब उनमें लिखने के लिये उत्साह न रहा । कुर्सी के सहारे उन्होंने ज़ोर से आलस्य त्यागा और बीढ़ी जलाकर दो-चार बार घुझाँ भी उड़ाया कितु इतने पर भी सुस्तीं ने उनका साथ ने छोड़ा ।




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