समायिक साधना | Samayik Sadhana

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राजेंद्र दफ्तरी - Rajendra Daftari

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सुरेन्द्र दफ्तरी - Surendra Daftari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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9. मर्मज्ञ आगम विज्ञ सुज्ञ ज्ञानगच्छ सिरताज कां। नित नमन घेवर वीरपुत्र श्री समर्थ गुरुराज महान्‌ कों।। चवदह पूर्व धार कहिये ज्ञान चार बखानियं | जिन नहीं पर जिन सरीखा एहवा श्री सुधर्मा स्वामी जाणिये।। मात-पिता-कुल-जाति निर्मल-रूप अनूप बखाणिये। देवता ने वल्लभ लागे एहवा श्री जम्बू स्वामी जानिये।। चौबीसमां महावीर शुरवीर महाधीर वाणी मीठी खाण्ड-खीर सिद्धार्थ नन्द है। नागणीसी नार जाण घर में वैराग्य आण जोग लियो जग भाण छोड़िया मोह फन्द हैं॥। चवहद हजार संत तार दिया भगवन्त कमों का किया अन्त पाम्या सुखकन्द है। भणे कवि चन्द्रभाण सुणो हो विवेकवान महावीर धरिया ध्यान उपजे आनन्द है।। त्रिभुवनपीडा हरणहार हो तुमको मेरा नमस्कार जग के उज्ज्वल अलंकार प्रमाण तुम्हें मेरा हर बार। तीन जगत्‌ू के नाथ आपके चरणों में जावूँ बलिहार भवसागर के शोषणकर्ता तुम्हीं को वन्दन बारम्बार।। अरिहन्ता शरणं मुझने होइजो आतम्‌ शुद्धि करवा सिद्धा शरणं मुझने होइजो राग द्वेष ने हरवा। साहू शरणं मुझने होईजो संयम शूरा बनवा धम्मं शरणं मुझने होइजो भवोदधि थी तरवा॥। 1




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