राजा भोज | Raja Bhoj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजा भोज का बंश चर न लिखकर त्रह्वक्षत्कुलीन लिखा है। यह विचारणीय है। सम्भवत इस पद का प्रयोग या तो न्राह्मण वसिष्च को शत्रु के प्रहमारों से बचाने बाला बंश मानकर ही किया गया होंगा या न्राह्मण बसिष्च के द्वारा ( अग्निकुंड ) से उत्पन्न हुए क्षत्रिय बंश की सन्तान समभक कर ही । परन्तु फिर भी इस पद के प्रयोग से इस वंश के न्राह्मण ओर क्षत्रिय की मिश्रित सन्तान होने का सन्देह भी हो सकता है । व्रह्मक्ततकुलीनः प्रलीनसामन्तचक्रननुतचरण । सकलखुरुतैकपुज्ः श्रीमान्मुज्श्चिरं जयति ॥ र लत आायते इति चत्रं । घह्मण क्तत्र॑ ब्रह्मच्तत्रम्‌ । पताद्रशं कु तर ज्ञात बह्मक्षञकुलीनः । कालीदास ने भी अपने रघुवंश में लिखा है -- च्वतात्किलि जायत इत्युदग्रः चात्रस्य शब्दों भुवनेषु रूढः । (सग र शोक १३ ) ३ इस सन्देह की पुष्टि में निम्नलिखित प्रमाण भी. सहायता उदयपुर ( ग्वालियर ) से मिली प्रशस्ति में लिखा है -- मारयित्वा परान्धेजुमानिन्ये स ततो मुनिः । उवाच परमारा ख्यपा] थिंवेन्द्रो भविष्यसखि ६] तदन्ववाये 5 खिलयज्ञसंघ- वमामरादाह्दतकीतिरासीत्‌ । उपेन्द्रराजो दिजवग्गरल्लं सौ शो] यांज्ितोतुद्ननपत्च मा] नः ७] ( एपियाफ़िया इणिडिका भा० 9 प० २३४ ) यहाँ पर मालवें के प्रथम परमार नरेश उपेन्दराज का एक विशेषया दिजवग्गंरल्ल भी सिलता है ।




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