जाम्भोजी विष्णोई सम्प्रदाय और साहित्य भाग 1 | Jaambho Ji Vishnoi Sampraday Aur Sahitya Bhag 1

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Jaambho Ji Vishnoi Sampraday Aur Sahitya Bhag 1 by हीरालाल माहेश्वरी - Heeralal Maheswari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कमा ्रस्तावना 1 धार पर कभी ऐशवयशालो वन जाने वा ही कोई प्रयरन किया । उ होने भपने गृहादि का परित्याग वरके भाध्यास्मिक साधना एवं लोक सप्रह को व्त्ति झपनायी तथा तदनुसार शो वे वरावर जन कल्याण के बाय में लगे रहे शौर सब साधारण को एक झादश सात्विक जीवन यापन वरने का सदुपदेश भी देते रहे । उनके विचार अ्रत्यत व्यापक थे झौर उनमे । सब कहो उनकी सम वयाह्मक दृष्टि का प्रभाव लक्षित हो रहा था झौर यही कारण था कि उनके भ्रमुसार निमित की गई नियमावली मे कतिपय साम्प्रदायिक सी दीख पड़ने वाली बातो के भ्रा जाने पर भी उसमें किसी प्रकार की सकी णता के टू ढने का प्रयास बहुत कम पकिया गया है । उनके द्वारा प्रवर्तित विष्सोई सम्प्रदाय भी श्रारम्भ से हो जनसाधारण के उपयुक्त घामिक जीवन का ही प्रतिपादन करता भाया झौर इस सम्बंध में यह उल्लेखनीय है कि इसके प्रारम्भिक भ्रनुयायियों मे भी भ्रघिकाश वे ही लोग थे जो गृहस्थ जाठो वाले समाज के थे । जाम्मोजी ने कदाचित उ ही के लिए सब प्रथम किसी अवजुवाट श्रर्यात सीधे वा सहज माग के झादश की कल्पना मी की थी श्रौर उदें बतलाया था कि जो कोई इस वजूवाट को अ्रपना छेगा वह देहावसान ने भ्रन तर स्वग पहुंच जायगा? । उठोने यही बात फिर भर यत्र राजयवग को भी सम्बोधित करके कही श्रौर उतहें चेताया कि है राजेद्ध कूड मायानजाल में न भूलो प्रत्युत उससे पथक झोजू की वाट को अ्पनाो । इस माग मे ने तो किसी प्रकार के प्रपच का प्रलोमतन भा सबता है भ्ौर ने किसी पाखड के कारण विपयगामी बन जाने का भय ही वाधा डाल सकता है । इसके दोना पाइव क्रमश विघार एवं प्राचार के द्वारा सुरक्षित हैं जिस कारण यह ठीक सीधी श्र ही जाता है । वाह विवाद के अम जाल म पड़े हुए लोग श्राचार विचार के स्वाद को नहीं जान पाते 3 तथा जो सदाचारी श्राचार म लीन है श्रौर जिसकी सयम सील एव सहज म पुरी झास्था है उसे कभी श्रावागमन की श्राथका भी नहीं हो सकती । र्‌ जाम्मोजी का जीवन वाल सवत १५०८ से लेकर सवत १५९३ तक ठहरता है जिस कारण जहा तक पता है राजस्थान के क्षेत्र वाले हि दी के प्रमुख सत-कविया म ये सबसे प्राचीन कहे जा सकते हैं । पर तु श्राइचय की वात है कि इनके विएय में श्रभी तक हम पूरी जानकारी नही हो पाई थी भ्रीर ने इनकी यथेष्ट रचनाएं ही उपलघध हो सबी थी । इनके द्वारा प्रवर्तित विष्णोई सम्प्रदाय के प्रचार श्रौर प्रसार वा राजस्थान मध्य १ अवजूवाट जे नर भया काची काया छोडि क्वलासे गया । -सवदवाणी सबद २२ पव्ति ३ ४३। २ कूड माया जाल न भूलि रे राजिद्र झलगी रही भ्रोजू वी वाह । नएवही सबद १०४ पढित ३ ४1 डे भरभी मूला वाद विवाद भाचार विचार न जाणत स्वाद । उावही सबद र८ पक्ति ६६ ६७ । ४ को भाचारी भाचारे लौरपे सजमे सीले सहज पतीना । तिहि भाचारी ने ची हत कौण जिहिं की चूक सहज झावागौगा ॥ वहीं सबद ५९ पक्ति रैर-१५।




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