श्रीराम चरित मानस विजया टीका भाग 3 | Shri Ramcharit Mans Vijaya Teeka Bhag 3

Shri Ramcharit Mans Vijaya Teeka Bhag 3 by पं. विजयानन्द त्रिपाठी - Pt. Vijayanand Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विपयानुक्रमणिका श्डे निर्णय । अपना फलदातृत्व । परम सयानो के उपाय गुण और दोप वर्णन करना फिर घर जाना । ब्रह्मलोक में कथा । पुरवासियों को उपदेश 1 अवधवासी का दनार्थ हाना । वसिष्ट मुनि वा आगमन । आत्मकथा । भक्ति वरदान याचना दो ९१ तक । पृ० ७रहे से । उमा के आववें प्रश्न का उत्तर एव बार पुर बाहर गमने । गज रथ सुरंग का सविभाग । अमराई से विश्वाम । नारद का छागमन । गुणमान । शोमा सिन्खु को हृदय मे रखबर प्रस्थान दो ५१ तक 1 पू० ७९१ से । कथोपसहार जो कथा भरुमुण्डिजी ने गरुडजी से कही थी उसे उमा को सुनाकर अर्थात्‌ बारह प्रदनो में से आठ का उत्तर देकर । आगे क्या कहूं ? इस विपय में शिवजी का प्रदन । उमा की कृतकृत्यता । कथासे मा का ने अघाना दो ५२७ तक । पृ० ७९६ से समा के पाँच प्रदन १ अतिदुरूंग हरिमक्ति शाक ने कंसे पाई? २ यह प्रभुचरित कंसे पाया ? ३ तमने उससे कंसे सुना ? ४ गरुड ने मुनिया को छोड़कर काक से बया सुना ? ५ किस विधि से सम्वाद हुआ दो ५४ ५ तक 1 पृ० ८०० से । तीसरे प्रदन का उत्तर प्रस्त सुनकर शिवजी को आनंद । बथनीय इतिहास का माहात्म्य 1 गरुड द्वारा ऐसे ही प्रश्न चाव के प्रति किये जाते का उल्लेंस । उन सब वातो के कहने की प्रतिज्ञा । अत पहिले तीसरे प्रश्न के उत्तर की आवश्यकता । दक्ष यज्ञ में सती के शरीर त्याग पर दु खित शिवजी का नीछ शैल पर जाना । वहाँ का हृश्य । भुमुण्डि की दिनचर्या । मराल शरीर धारण करके थिवजो का कथा श्रवण ।. तत्पश्षातु बैलासागमन दो. ५७ तक । पृ० ८०४ से 1 चोथे 3 प्रद्न का उत्तर नागपाश में बेँध हुए रामचनद्र को छुडान पर गरुड को विपाद । गरुड का संशयोच्छेद के छिए नारद वे पास जाना । नारद का उसे ब्रह्मदेव के पास भेजना । ब्रह्मादेव का शिव के पास भेजना । शिव का मुसुण्डि के पास भंजना । अभिमान मड्धू तथा पक्षोमाषा मे यथाथ॑ बोध होना ही काक के पास गरुड को भेजने का कारण दो रे तक । पू० ८रै० से 1 पाँचवें प्रदन का उत्तर अथ उत्तरघाट प्रारम्भ गरुड का भुसुण्डि के यहाँ जाना । तंडाग मज्जन । जल पान । कथा प्रारम्म के समय पहुँचना । मुसुण्डि का सत्कार । पूजा । आज्ञा के छिए प्राथंना । आश्रम के दर्शन से ही मोह संदय भ्रम का मज्ञ । श्रीराम कथा सुनने के लिए विनय ।. भुमूष्डि का चीरासी प्रसद्णभो मे रामकथा कहना मुख रामचरितमानस 1 गरुड की कृत इत्यता । उसी भ्रम को सत्सद्ध का १ बहुरि बहु करनायतन कीह जो अचरज राम । प्रजा सहित रघुवशमनि किसि गवने निज धाम 1 २ तुम केहि माति सुना उरगारी । कहट मोहि अति कौतुक मारी 1 दे सा कहि हतु ततात कहि जाई । सुनि क्या मुनि निकर विदाई ॥ ४ कह कवन विधि मा सवादा । दोउ हरिमगत काम उरगादा ॥




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