आधी रात से सुबह तक | Aadhi Raat Se Subah Tak

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Aadhi Raat Se Subah Tak by डॉ. लक्ष्मी नारायण लाल - Dr. Lakshmi Narayan Lal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एक लम्बी चाम / १५ हजार साथी वद पड़े थे । उनमे से ही किसी एन वा चडीगढ म पेरे साथ रया जा सकता था । परन्तु सरकार ने एसा करना उचित नहीं समया। इस दप्टि स मेरे साथ इददिराजी की संरवार का व्यवहार विदेशी अप्रेज़ी सरकार के व्यवहार से भी बुरा था। क्यांकि सन ४२ वें आदोलन कं सिलसिले म जब मैं (१६४३ म) गिरफ्तार होकर लाहौर म लाखिल हुआ हो पहले वहां भी कुछ महीना तक मुझे बिल्कुल अकला ही रखा गया और मैं मरवार स साथी की माग करता रहा । भत म उस विदेशी सरकार ने मरी प्रायना सुनी जौर जद डा० राममनाहर लोहिया लाहौर विले मे लाए गए ता हर दिन एक घटे तक उनस मितने और बातचीत करन वी इजाजत मुझे मिली । लेकिन रस स्वदेशी सरकार का रवमा तो अजीब रहा। हा कुछ दिनो के वात वह इसके लिए तैयार हुई कि मैं चाहू तो अपने निजी सबक गुलाव यादव को साथ रख सकता हु। परन्तु मुर्श तो सवक से अधिक साथी की ज़हरत थी । इसक अलावा गुलाव भी कटी वनकर ही मरे साद रद सकता या । यानी एक दर भरे साथ रहते पर उरको फिर वाहर जाने की इजाज़त नदी मिलती । यह मुझे मजूर नही था कि वह मेरे साथ बिना कसूर कही बनकर रह। इस प्रकार आखिर तर मुझे अव॑ला हो रहना पडा और यही मेरे लिए सबसे वडी संजा थी । -कसी थी बह जगह जहा आप नज़रबद थे रे चडीगद अस्पताल के जिस कमरे म सुख नजरबद रखा गया था वहा घूमन के लिए तग गलियारा (कारीडोर) था जिसके दोनों तरफ के कमरों म मर सशस्त्र पहरदार थे । हृदय का रोगी होन के कारण मैं खुली हुवा मे मना फिरना चाहता था । बहुत आग्रह करने पर करीव ढाई महीने के चाट १६ मितम्वर को मुय नस्पताल के हो अहाते म स्थित उसके अतिथि भवन मे ले जाकर रखा गया जिसके सामने क॑ मदान म मैं योडा टहल फिर सकता था । परन्तु वहा मैं कुछ ही दिन रह पाया वयाकि अचानक एक दिन (२७ सितम्बर का) मेरे पेट से भयानक दद शुरू हुआ वैसे दद का अनुभव मु जीवन मे पहले कभी नही हुआ था । शाक्टरा ने दवाएं दी जिससे दद गम हो गया । परन्तु ८ अक्तूबर को और फिर अक्तूबर के ही आखिरी दिनों म वसा हो दद शुरू हुआ । उसके कारणों की जा




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