मेरे राम का मुकुट भीग रहा है | Mere Ram Ka Mukut Bhig Raha Hai

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Mere Ram Ka Mukut Bhig Raha Hai by विद्यानिवास मिश्र - Vidya Niwas Mishra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about विद्यानिवास मिश्र - Vidya Niwas Mishra

Add Infomation AboutVidya Niwas Mishra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
मर प्रत्येक युग में साहित्य को मार्गनिदेश देने में यहाँ की संस्कृति अपना मैंपथ्य कार्य करती आायी है । विस्ध्य वी टेकड़ियों पर विश्वाम लेते हुए मेघदूत का सन्देशवहन मानो युगो-युर्ों तक मारती के विरह के आतप में विन्ध्य की और से दिये गये स्निग्ध आश्वासन की पनी छाँह है जहाँ न वेब पृथ्वी की ज्येप्ठतम सन्तान की पुसातनतम स्मृतियों की. शिठाओं को फोडकर निकलती हुई रसवन्तो धाराओ की परितृप्ति है रात-सत स्वरित गति से घिरती- थिरवती विजडित श्यामल पिण्डलियों के हीरकमय स्वेद-क्णों की निश्चल झलक है रुपगर्विताओं की अग-मंगिमा से पागल मुझुरो से होड लेनेवाली सरसी में निशाकर का मदिर विलाम है और राम और सीता--जैसे आदर दम्पति के स्नेह से पुलकित मही के उर की एक मीठी-सी सिट॒रन है और दन-देवियों के द्वारा क्षण-क्षण प्रसालित क्षितिज-रेखाओ के बीच से हुए निर्मल चटकीले आकाश की अपूर्व नीलिमा का शारदीय प्रसाद है जिसे पाकर तमसा के तीर पर भी शारदा कूकने के लिए विवश हो जाती है रफटिकशिला पर तुलसी की कल्पना ठगी-सी रह जाती है पवन-गति से चलने वाले सन्देशवाहक मेघदूत के भी नयन उलझ-गे जाते हैं शिव और शक्ति की कन्दर्प-लीला अपने-माप विहसित हो जाती है इतनी अधिक कि एक सहसर रजनी-चरित कौन कहें असंख्य जनीन्चरित या यो कहें कि केवल अपण्ड रजनीचरित की अदभुत सृध्टि करानेवाछी बुहृत्पया को सूल्रपात करने लगती है वह बुदुत्कथा भी ऐसे रसीले ढंग से एक-दूसरे से गुम्फित कि किसको परिवेष्टित करके वह कथा चर रही है यह याद करने की जरूरत महदीं रह जाती कथा में ही मन भूल जाता है। यह तो एक पक्ष हुआ पर यहाँ नल-दमयस्ती उपाख्यान भी हैं दमयन्ती को तीन डगर बताकर मल का छल भी है उदयन का वीण-दादन है तो वासवदत्ता का हरण भी हे । यक्ष-यक्षिणियों के उल्लसित जीवन के यदि चित्र ह्ेतो विद्याघारो के शाप को अकह कहानी भी है । सौन्दर्य का अथकित नदेन है तो शौर्य का उद्दाम आवर्तेन भी है। यही तो एक आर पाण्डवो की शरण दें दूठरी छोर कृष्ण के भुकुट-चिह्न को चरणाकित बनायें यह प्रबल अभिमान भी है। निपादराज गुदद का प्रणिपात है तो भारशिवों बौर वाकाटकों का अप्रतिहत पराक्रम भी है जिसने एक सत्ता को एकदम आत्मसात्‌ कर लिया। इरावती और सागरिका के विज्वुछ प्रणय की स्मृति दिलानेवालो नृत्य-मुदाएँ / तो छण्पन-छप्पन युद्धों मे जयमाल पहनतेवाठी छत्साछ की शोरय-लक्ष्मी का जाव॑ भी है मुद्दी-मर अनुचरों के बल पर दसगुनी अरि-संख्या को परास्त करने- बाली बुन्दन कवर की तेज बाग भी है। जहाँ एक जोर जीवन का बहुरंगा खत्लास है वहाँ दूसरी बोर आन पर मरने का मान भी है । भाकाशचुम्बी दिन्ध्य की धरती का वरदान ७




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now