रहीम का नीति काव्य | Raheem Ka Neeti Kavya

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Raheem Ka Neeti Kavya by डॉ. बाल कृष्ण अकिंचन - Dr. Bal Krishan Akinchanविजयेन्द्र स्नातक - Vijayendra Snatak

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विजयेन्द्र स्नातक - Vijayendra Snatak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका नवाव अदुरहीम खानखाना श्पन समय के वीर-वहादुर याद्धा दुशल राय- नानिवत्ता और मारतीय सास्कतिक समवय वा शझाहरा पस्तुत करन वाले सर्मी कवि थे । युद्ध-कता का वरटान उ ह श्रपने पिता वैरमदा स विरासत के रूप से मिदा था श्रौर सजनीति वा पाठ उदहनि सम्राट प्रददर की पाठतगला से पटा था 1 कान्यन्वठा सनकी निमा सिद्ध प्रतिभा का पुष्य फत था. जिसका उपयातय उठाते स्वान्त सुखाय तक ही सीमित न रखकर पन-पीवन की सामू्हिर चेतना का प्रवुद्ध करन से किया 1 रहीम का जीवन-बून एवं सुप्रमिद्ध एतिहासिक महापुर्प के रूप मे श्रकवर झौर जहागीर के शामन-वाए में लिखे गय श्रनक ग्रथा से विस्तार के साथ उपवघ होता है। अटत बाकी ने मग्रासिरे रहोमी नाम से रहीम को विस्तृत फ़ारसी जोवनी लिवी है। इस जीवनी से रहीम के लौफिक एवं साहियिक जीवन पर पयाप्त प्रकाश पटता है। अ्कवरी दरवार के इतिहास लखक अवुल फउत श्ौर श्रद्धुत कादिर वदाउनी ने भी श्रपन रतिहास ग्रथा म रहीम का एक वीर वहादुर याद्धा के रुप मे वणन किया है और साथ ही उनकी साहियिक प्रतिमा को सुरि मूरि प्रशामा वी है । जहागीर ने अपने तुजुक जहागीरी में उन श्रम की मी चर्चा की है तिनदा लेकर जहागीर झौर रहीम क॑ बीच कुछ समय तक मनामालिय चलता रहा था । श्रग्रत इतिहास लेखका की दृष्टि भी रहीम की विल्लसण प्रतिभा पर पड़ी श्रौर प्राय सभी न उन्हें उदार योद्धा के रूप मे चित्रित किया 1 झायुनिव युग स स्वर्यीय मु ती देवीप्रसाद ने हिही मे खानखाना नामा लिखकर रहीम के जीवन-बूत्त का सब प्रकार से परिपूण बना दिया है । रहीम के जीवन पर इतनी व्यापक दृष्टि स किसी श्रय भाषा मे कोई पुस्तक नहा है । इस सुदर जीवनी के अतिरिक्त रहीम की कान्य-साथना श्रौर कता पर प्रकार डालने वानी छाटी-छोटी लगभग दो दतन स कूपर पुस्तकें हिन्दी में यथा विधि प्रकाधित ही चुकी हैं । यह व्स वात का प्रमाण है कि रहीम का स्मरण विगत चार दतादिदया से केवल एतिहासिक पुर्प के स्प से ही नहा वरन्‌ मारतमाता के सच्चे सपूत के सूप सम होता आरा रहा है। अद्धुरहीम सखानखाना का जम सवबत १६१३ (ई० सन्‌ १५५९) में इतिहास- प्रसिद्ध बरमखा के घर लाहौर मे टुग्रा था । सम्राट झकवर उस समय सिकन्दर सूर के झानमण का प्रतिरोध करने क॑ तिए सन्य सहित लाहौर में उपन्यित थे । वेरमला वे यहा पुबात्पत्ति का समाचार पाकर वे स्वय वहा पहुच और उन्होंने नवजात दियु का नाम रहीम रखा 1 रहीम का जीवन-वृत्त प्रस्तुत करन वाले सभी पग्रया म उपयुक्त तिथि का हो जम-सवत्‌ के रुप म स्वीवार दिया गया है। रहीम के पिहा वरमखा वा हुमायू के समय से ही मुगल दरदार स बडा सम्मान था । बहादुरी एव बुद्धिमत्तापूण अनेक कार्यों स बरमता ने हुमायू पर गहरा अभाव जमाया हुमा था ।




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