अनुभव प्रकाश | Anubhav Prakash

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Anubhav Prakash  by पं- दीपचंद जी शाह - Pt. Deepchandji Shah

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं- दीपचंद जी शाह - Pt. Deepchandji Shah

Add Infomation AboutPt. Deepchandji Shah

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(5३ चढ़ष्या है ? छूटें सुग्व है कलेचा नाहीं परि वाइडि सो (बाय व वात रोग होने से ) ठे ही ले । तैसें पर मोह सौ वंध्या है छूटें खुख है परि न छूटे है अनादि संयोग छूटे तें खुग्ब हो है परि झूठे ही दुःग्व माने है । याके मेटवे को प्रज्ञादेनी आ- त्मा के परके एकत्वसन्धानमें डारे चेतना अंश अंदा अपना जानै जामें जड़ ( का ) पवेद् नांही। कैसे जाने ? मो कहिये है-- यह परमें आपा जाने है सो यह जान (जानना ) निज बानिगी हैं | इस निज (ज्ञान ) चानिगी कौ बहुत संत पिछानि पिछानि अजर मर सये सो कहने मात्र ही न ल्यावै चित्तको चेतनामें लीन करे स्वरूप अनुभवका विलास खुग्वनिवास है ताकों करे सो केसें करे सो कहिये है-- निरन्तर अपने स्वरूपकी भावनामें सम रहे दर्दान ज्ञान चेतनाका प्रकाद्या उपयोग द्वार में इढ़ मावे । चिदपरिणतितें स्वरूप रस होय है। द्रच्य गुण पयायका यधार्थ अनुभवना अनुमव ७ ठ है। अनुभवततें पंच परमयुरू भमये व होंदेंगे (सो) प्रसाद नुभवका है । अनुभव व्याचरणुकों




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now