अनुभव प्रकाश | Anubhav Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(5३ चढ़ष्या है ? छूटें सुग्व है कलेचा नाहीं परि वाइडि सो (बाय व वात रोग होने से ) ठे ही ले । तैसें पर मोह सौ वंध्या है छूटें खुख है परि न छूटे है अनादि संयोग छूटे तें खुग्ब हो है परि झूठे ही दुःग्व माने है । याके मेटवे को प्रज्ञादेनी आ- त्मा के परके एकत्वसन्धानमें डारे चेतना अंश अंदा अपना जानै जामें जड़ ( का ) पवेद् नांही। कैसे जाने ? मो कहिये है-- यह परमें आपा जाने है सो यह जान (जानना ) निज बानिगी हैं | इस निज (ज्ञान ) चानिगी कौ बहुत संत पिछानि पिछानि अजर मर सये सो कहने मात्र ही न ल्यावै चित्तको चेतनामें लीन करे स्वरूप अनुभवका विलास खुग्वनिवास है ताकों करे सो केसें करे सो कहिये है-- निरन्तर अपने स्वरूपकी भावनामें सम रहे दर्दान ज्ञान चेतनाका प्रकाद्या उपयोग द्वार में इढ़ मावे । चिदपरिणतितें स्वरूप रस होय है। द्रच्य गुण पयायका यधार्थ अनुभवना अनुमव ७ ठ है। अनुभवततें पंच परमयुरू भमये व होंदेंगे (सो) प्रसाद नुभवका है । अनुभव व्याचरणुकों




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