कला | Kala

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Kala by हंसकुमार तिवारी - Hanskumar Tiwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कला-चर्चा ७ समाधि या मन की एकाग्रता तथा अनुशीलन या श्रम्यास काव्योसत्ति के कारण हैं । एक से श्राभ्यन्तरिक शक्ति श्रौर दूसरे से प्रयत्न का बोध होता है इन दोनों से काव्य की मूल शक्ति या प्रतिभा उद्भासित होती है । यही शक्ति काव्य का देतु है । मम्मट के श्रनुसार-- शक्तिर्निपुणता लोककाव्य शास्त्रायवे्षणात्‌ । . काव्यशशिक्तया5म्यास इति हेतुस्तदुदूमवे ।। रुद्रट ने भी इस शक्ति को श्रदष्जन्म श्र प्रयत्नजात माना है किंतु उनका मत है सहजा के बिना काव्य का उद्भव संभव भी हो तो वह उप- दासास्पद द्वोगा । यह सिद्धान्त सर्वमान्य-सा है । पाश्चात्य देशों में भी यह स्वीकार किया गया है कि कवि पेदा होते हैं बनाये नहीं जाते । हमर के इलियड में भी (रचनाकाल ईस्वी पूव श्राठवीं सदी) देवी प्रेरणा श्रौर जन्मजात प्रतिभा का उल्लेख एक स्थान में श्राया है ।- यथा--हे डेमोसकस देवी प्रेरणा वाले उस कवि को यहाँ बुलाशओ उसके जैसी शक्ति देव ने श्रौर किसी को नहीं दी । उसकी झात्मा उसे जिस किसी भी रीति से गाने को कदती है वह ठीक उसी प्रकार से मनुष्यों के मनःप्रसादन में समथ हो सकता हे |# भामद ने इस सजनक्षम प्रतिभा को नेसर्गिकी श्रौर वामन ने इसे जन्मजन्मान्तर गतः संस्कार विशेष कहा है। यह प्रशा श्रभ्यासलब्ध तो हो दी नहीं सकती प्रयत्न और परिशीलन से उसका परिमाजंन भले ही हो । अतः उल्लिखित कला-सूचियों में क्रियाकल्प काव्य व्याकरण विधि काव्य- व्याकरण श्रादि का जो उल्लेख है वह काव्य नहीं प्रत्युत उक्ति-वेचित््य समस्यापूत्ति कौशल चमस्कार आइति की विशेषता आदि का ही च्ोतक है । . जमन कवि गेटे ने ऐसे चमत्कारवादियों को निरा साहित्य- बिलासी माना है जो श्रलंकार श्रादि के चपेटे में श्राकर काव्यात्मा की इृत्या कर बैठते हैं । एक चमत्कार का उदाहरण दें | दंद्रो दविगुरपि चाह मदूगेहे नित्यमव्ययी भावः तत्पुरुष कमंधास्य येनाहं स्यां बहुब्रीहि ॥ के विचार भर विवेचन का भारतीय और पाश्चात्य काब्य शीर्षक लेख । क्रिया कल्प इति व्याकरण विधि काब्यालैकार इस्यथ । त्रितयमपि क्रियाँगं पर काब्य बोघानाथ च--कामसूत्र । श्रौर वाचां विचित्र मार्गाणों निवबंधु क्रियाविधिम-काब्यादर्श ।




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