देवी चौधरानी | Devi Choudharani

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Devi Choudharani by बंकिम चन्द्र - Bankim Chandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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च्ड प् दे दे एक प्रहेर राधि व्यतीत होने पर गृह-स्वामी भोजन करने माए । गृहिणी मोजन कराते बंठी । गृहनस्वामी मे पूछा वह कुल्टा बहू गई क्या 7 गृहिंगी बोली रात को कहां जाती ? या रात को मैं अपनी अतिथि बहू को भगा देती ? अतिथि को अतिथिधाला में जाना चाहिए ? मैंने कह दिया मैं न भगा सकूंगी । भगाना हों तो तुम्ही भगाओो परन्तु वह है बहुत सुन्दर । सुन्दर भी शुल्टा ही होती है। सर मैं ही भगा दूंगा । ब्रज को बुलाओ । एक चीकरानी ब्रजश्वर को बुला लाई 1 सुन्दर युवक था । बह पिता के पास विनीत भाव से आया । रिवल्लम बोले तुम्हारी तीन शादियां हुई हैं जानते हो ? प्रथम विवाह एक बार्दी (छोटी जाति) को लड़की से हुआ था है फिर भी वह आज आई है । मैंने तुम्हारी मा से कहा उसे क्राडूं मार कर बाहर कर दो परन्तु औरतें भीरतों पर हाथ नहीं उठा सकती है यह तुम्हारा काम है । भौर कोई उसे स्पर्श नहीं कर सकता । लुम रात को उसे काढ़ मारकर घर से निकाल देना नही तो मुख चेन ने पढ़ेंगी गृहिणी बोली नहीं बेटा स्त्री पर हाथ न उठाना । पिता की बात माननी पढ़ेंगी तो कया सा की बात न सुनेगा ? सैर जो हो भली तरहू विंदा करना 1 ब्रज पिता से बोले जो आज्ञा मोर मां से अच्छा कहकर खड़ा रहा । तभी गृदिणी ने अपसे पति से पूछा तुम जो बहू को निकाल रहे हो तो बह खाएगी कया ? गजी चाहे करे चोरी डकंती भीख मांगे सुखे कया ? गृहिंणो म्जेश्वर से बोली सुना तुने । बह से यह बात भी कह देना उसने पूछा है । इससे तुम्हारे पिता की नाक रह जाएगी 1




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