विष - वृक्ष | Vish Vraksh

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Vish Vraksh by बंकिम चन्द्र - Bankim Chandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बाद देखी श्यी होमो, पर तु मुयमुखो शो देवन ঘর ইরিনা रहा। कुद ने देखा कि सूयमुखी आकाश से दिलाईडेने वली स्त्री पे... समान नहीं थी । सूयभुघी तपे स्तान वे रग की पी । उसका चेहरा सुदर , था । स्वप्न म दिखाई देने वाली श्यामागी की आखो मे इतनी भलौक्रिक मनाहस्ता नही थौ । नूयमुखी कौ बनावट भी वसी नही थी । स्वप्नम्‌ दिखाई देने वाली स्त्री भी नुटर थी, परतु सूयमुखी उससे सौ गुनी सुदर थी। स्वप्न म॑ दिखाई दन वाली स्त्री की आयु बीस से अधिव नही थी । सूथमुखी की आयु छब्दीस वष के लगभग थी | सूयमुखी के साथ उस मृति वा कोई सादृश्य न दख, कुद के मन की चिता जाती रही । सूयमुखी ने कुद से प्रेमपुवक बातचीत वो । उसकी सेवा के लिए दासियो को बुलाकर आदेश दिया और उनमे जो प्रधान थी, उससे कहा “झुद दे साथ मैं ताराचरण का विवाह करूपी । इसलिए तुम मरी भौजाई वी तरह इसकी सेवा करना । दासी ने स्वीकार क्या। कुद का साथ लेकर वह दूसरी फोठरी मे चली गई । इस बीच कुद ने उसकी ओर देखा । उसे देखकर कुद का सिर से वैर तक पसीना आ गया। जिस स्त्री को कुद ने आका”ा-पट पर देखा था, यह दासो हू-ब-हू वही थो । कुंद ने पूछा, तुम कौन हो ?! 'मेरा नाम हीरा है ।' दासी ने कहा । बुन्दनन्दिनी का ताराचरण के साथ विवाह हुआ | ताराचरण उत्त अपन धर ले गए, परतु उसे पाकर वह बहुत ही विपत्ति मे पड़ गए। ताराचरण की स्त्री शिक्षा और पर्दा भग के प्रबध दवेद्र बाबू की बैठक में पढ़े जाते थ । तक वितक का समय आने पर मास्टर साहब सवदा दम्भ के साथ कहा करते थे, यदि कभी मेरा समय हागा तो इस विषय में मैं पहिले रिफाम करने का दष्टात दिख्यऊगा । अपना विवाह होने पर में अपनी स्त्री को सबके सामने बाहर ले ०[ऊगा ।' अब विवाह हो गया था। झुदनादनी के सोंदय की ख्याति मित्रो मे प्रचारित हुई। सबने कहा, कषा रहा वह प्रण तुम्हारा ?' देवेद्ध न पूद्ट , क्यो जी | क्या तुम भी झोल्ड फूल्स क टन मे हो ? पत्नी के साथ हम लोगो का परिचय क्या नही कराते ?!




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