हिन्दू परिवार - मीमांसा | Hindu Parivar Mimansa

Hindu Parivar Mimansa by हरिदत्त वेदालंकार - Haridatt Vedalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हू. हदें. विषयों की विविध व्यवस्थाओं की सहेतुक व्याख्या की गयी है । पहले प्रत्येक प्रथा का ऐतिहासिक स्वरूप बताया गया है तदनन्तर उस ऐतिहासिक पृष्ठ- भूमि के आधार पर उस के उद्गम तथा प्रवर्तक कारणों के सम्बन्ध में ऊहापोह किया गया है अन्त में उस प्रथा के आधुनिक रूप की समीक्षा हे तथा उसके भविष्य के सम्बन्ध में विचार किया गया है । उदाहरणार्थ पत्नी के सतीत्व के सम्बन्ध में पहले भारतीय वाझमय की सामग्री को कालक्रम से उपस्थित किया गया है तत्पश्चात्‌ इसके ऐतिहासिक विकास का स्पष्टीकरण है तदनन्तर इस व्यवस्था के उत्पादक हेतुओं का प्रतिपादन है और अन्त में इसके भावी रूप पर विचार है (पृ० १६२-१७२) । ऐतिहासिक दृष्टि से हिन्दू परिवार का विवेचन करते हुए तुलनात्मक पद्धति का भरपूर प्रयोग किया गया है । प्रसिद्ध ब्रिटिश लेखक किपलिंग यह कहा करता था कि वे इंगलैण्ड के विषय में क्या जानते हें जो केवल इंगलैण्ड को जानते हें । उस की इस उक्ति का यह आदाय था कि दुसरे देशों का ज्ञान होने पर और उन के साथ इंगलैण्ड की तुलना करने पर ही इस देश का यथार्थ ज्ञान संभव है । यही बात हिन्दू परिवार के सम्बन्ध में कही जा सकती है। जो केवल हिन्दू परिवार को जानते हें वे इस का पूरा ज्ञान नहीं रखते हें । यह तभी संभव है जब हम हिन्दू परिवार सम्बन्धी विभिन्न व्यवस्थाओं की यूनान रोम फ्रांस जमंनी इंगलैण्ड अमरीका आदि दूसरे देशों की तथा अन्य जातियों की तत्सदूश व्यवस्थाओं से तुलना करें । तुलनात्मक ज्ञान के अभाव में अनेक भ्रान्तियां उत्पन्न हो सकती हैँ । उदाहरणार्थ आजकल न स्त्री स्वातन्त्रयमहंति ( मनु० १1३ ) की व्यवस्था के लिये मनु आदि प्राचीन शास्त्रकारों को दोष दिया जाता है । किन्तु तुलनात्मक अध्ययन से यह प्रतीत होता है कि प्राचीन काल में यह व्यवस्था सावंभौम थी । चीन में कन्फूशियस ने स्त्री के संबंध में मनु के शब्दों को अक्षर दोहराया है यूनान और रोम में भी यही स्थिति थी ( पृ० ९४ ) ।. वस्तुतः यह तत्कालीन परिस्थितियों का परिणाम था इस के लिये मनु आदि को दोष नहीं दिया जा सकता । इसके साथ ही तुल- नात्मक पद्धति से हमें यह भी ज्ञान होता है कि यद्यपि नारी को हिन्दू शास्त्र- कारों ने परतन्त्र माना तथापि स्त्रीधन के रूप में उन्होंने वैदिक युग में ही उसे ए से साम्पत्तिक स्वत्व प्रदान किये जो पदिचिमी जगत्‌ की नारियों को पिछली झाताब्दी के अन्त में ही प्राप्त हुए हैं (पृ० ५४६) । इस पुस्तक में प्रायः सर्वत्र पादटिप्पणियों में दूसरे देशों तथा. जातियों की हिन्दू परिवार के साथ सादृश्य




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