शुद्ध बुद्धि मीमांसा | Shudh Budhi Mimansa

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Shudh Budhi Mimansa by श्री भोलानाथ शर्मा - Shree Bholanath sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अनुवाद है और इसमें प्रथम अनुवाद की कमियां और तबुटियाँ होती 95) ६। स पुस्तक को कठियता के संबंध में तो शौपेन होर का ही साक्ष्य पर्याप्त होगा । वह अपने काष्ट संबंधी ध्यास्यानों के आरंभ में कहा करता था कि “आप किसी को भी आपने को यह मत बतलाजे दो कि काप्ट की “शुद्ध बुद्धि मीमांसा” का अस्तर्विष्ट विषय वयो है” । उसका आशय यह था कि यह ग्रंथ इतना जटिल और इतना प्रमेयबहुरू है कि किन्हीं दो व्यक्षितयों को राय इसके संबंध सें एक समान नहीं हो सकती । उसका ऐसा कहना कोरी कत्पना नहीं थी | यह वास्तविकता है कि काण्ट की इस रचना के कोई भी दो अनुवाद एवं कोई शी दो व्यास्याएँ एक सी नहीं मिलेंगी । काण के मिपम में सभी सभ्य देशों में विशाल साहित्य निभित होता जा रहा है। इस राहिंत्य की दशा ठीक वैसी है जैसी कि काप्टू के मत में उसके पूर्व दर्शनशास्त्र की थी। जिस प्रवगर दर्शन के क्षेत्र में प्रत्येक उत्तर-कालीन दार्शनिक अपने पूर्वेवर्तो दाशेनिकों के सिद्धान्तों को उधेड़ कर तार-तार कर डालने में अपनी कृतकृत्यता का अनुभव वरता है, उशी श्रकार काण्ट्‌ के व्यास्याता भी पू्वेबर्तो व्यास्याताओं के करे धरे पर पानी फेरने में अपनी सफलता समझते हैं । उदाहरण स्वरूप डॉ० पैटन्‌ और ऐव्‌० उब्ह्यू » कस्ीरर्‌ को बाण्द्‌ विषयक क्रृतियों के दावों को देखा जा सकता है। ऐसी दशा में में अपने प्रगास के संबंध में किसी भी श्रेय का दावा नहीं कर सकता, केवल इतना ही बहू सकता हूं पिः दस अनुवाद के द्वारा मैने यथाश्ववित हिन्दी भाषा के एक अभाव को पूर्ण करने का प्रयत्न किया है। यद्दि संख्या की दृष्टि से संगार की तीसरी सब से थ डी भाषा में काण्ट की इस कृति का अनुबाद न होता, तो यह कमी खछूती और खटकती रहती । इसके आगे , मेरी भगवान्‌ से यही प्रार्थना है कि हमारी राष्ट्रमाषा की विश्वत्ता को उदय दिन की शीघ्र ही प्राप्ति हौ, जव इस अनुबाद कौ नुटियाँ इतनी खठकने छगें कि इसपा स्थान कोई बरतविकतग्रा निर्दोष अनुवाद ले सके । प्रस्तुत अनुवाद की एक और विशेषत्ञा की ओर पाठकों का ध्यान दिलाना चाहता हैं। काण्ट साहित्य और दर्शन का गंभीर पंडित था । उसको समग्र य रोपीय दर्शन की परम्परा का अपरोक्ष परिचय प्राप्त था | अतएव उसे येको स्थानौ पर ग्रीक ओर लैटिन भाषा के शब्दों का प्रभोग किया --औक शब्दों का कम, लैटिन शब्दों का अधिक 1 উতিন कविता की पंवितयों को भी उसने अनेक अवसरों पर उद्धृत किया है। अंग्रेज़ी अनुवादकों ने इस बात को मान कर अनुवाद में इन शब्दों ओर उद्धरणों का अनुवाद नहीं ॥ दै कि साधारणतया प्रत्येक पाठक इनको सगयता ही होमा ) हिंदी अनुवाद में इस प्रकार की मान्यता के लिये स्पष्ट ही स्थान नहीं हो सकता । प्रस्यृतत हिन्दी अनुवाद में ऐसे सभी शब्दों और उद्धरणों का अनुवाद प्रस्तुत किया गया है। শীতানাপ शर्मा




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