आस्था के स्वर | Aastha Ke Sawar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जब तक उसकी मानसिक दासता समाप्त नहीं होती, वह सच्ची स्वतंत्रता का अनुभव नहीं कर सकता । थ्रापकी मान्यता है कि समस्या चाहे युद्ध की हो अथवा श्रकाल की, बेकारी की हो या भुखमरी की, शिक्षा की हो भ्रथवा भ्रनुशासन की श्र राजनीति की हो या श्रर्थनीति की--सबके मूल में राष्ट्र का मिरता हुमा नेतिक स्तर, चारित्रिक पतन, मानवीय शअ्रखण्डता श्रौर एकता के दुष्टिकोस का श्रमाव ही है । जिस राष्ट्र का चरित्र-बल सुदृढ़ होता है, उस पर कोई भी समस्या हावी नहीं हो सकती । इन्हीं सब कारों से ध्रापने अरुब्रत-श्रान्दोलन का प्रवर्तन किया । श्रान्दोलन का प्रथम अ्रघिवेशन चांदनी चौक, दिल्‍ली में हुम्ना, जिसको क्रांतिकारी प्रतिक्रिया मारत में ही नहीं, पश्चिमी देशों में भी बड़े तीव्र रूप में हुई । देश-विदेश के अनेक पत्र-पत्रिकाओओं में अर णुब्त-म्रनुशास्ता तथा. उनके दर्दन के बारे में समाचार प्रकाशित हुए । व अ्रणब्रत-सन्देश को दूर-दूर तक पहुंचाने के लिए आपने स्वय श्रनेक लम्बी-लम्बी पद-यात्राएं कीं । एक जेन-मुनि होने के कारणण पद-यात्रा श्रापका जीवन ब्रत है। किन्तु भारत के सुदूर भ्रचलों तक होने वाले प्रेदल-परिश्रमण का श्रेय अ्रणुब्रत को ही है । श्रणुब्रत-मारत के प्रचार- प्रसार के लिए न केवल श्राप स्वयं हिमालय से कन्याकुमारी तक पदयात्रा से जन-जन तक पहुंचे, किन्तु श्रपन ६५० सध-साध्वियों के ब्रिभाल संघ को भारत के हर प्रांत, नगर शभ्रौर गांव-गांव में नतिक एवं चारित्रिक मूल्यों के जागरण के लिए भेजा । श्राप भ्रत्र तक लगभग चालीस हजार मील की पद-पात्रा कर चुके हैं । भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद ग्रणुब्रत- श्रान्दोलन से प्रारम्भ से ही प्रमावित थे । स्वर्गीय पंडित नेहरू से भी ग्रापका मिलना ग्रनेक बार हुमा । पंडितजी का ऑ्रास्दोलन से काफी लगाव था । वे हृदय से चाहते थे कि जब देश में चारों श्रोर भ्रष्टाचार श्रोर स्वार्थ-पोषणण की भावना बड़ रही है, इस प्रकार के भ्रान्दोलनों का व्यापक प्रचार-प्रसार होना चाहिए । इसी तरह भारत के द्वितीय एवं तुतीय राष्ट्रपति सबंपल्ली डॉ० राधकृष्णन्‌ तथा डॉ० जाकिर हुसन एव स्वर्गीय प्रधानमन्त्री श्री लालबहादुर शास्त्री का भी झण ब्रत-प्ार्दोलन के लिए गहरा शअ्रनुराग था। इन राष्ट्र-पुरुषों ने न केवल अपना




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