संस्कृत - साहित्य का इतिहास | Sanskrit Sahitya Ka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ८ ) १९२८ में हुआ । उसके चाद ढॉ० सी० कुम्हम राजा के निरीक्षण में के० माथव कृष्ण दार्मा ने वैदिक भाग ( १९४२ ) की और पं० वी० कृष्णमाचाय ने ब्याकरण भाग ( १९४७ ) की खुचियाँ तैयार कीं । रायबहादुर हीरालाक शाख्री ने मध्य भारत आर बरार के प्रन्थों की रिपोट लेयार करके उनको १९२१ में नागपुर में छुपवाया । महाराज जम्मू काश्मीर के पुस्तकारूय की एक सूची रामचन्द्र काक भोर हरमट्ट शास्त्री हारा संपादित होकर १९२७ में पूना से छुपी । ढडॉ० काशीप्रसाद जायसवाल तथा पए० बनर्ली शास्त्री ने मिथिला के हस्त- लिखित अ्रन्थों की चार भागों में सूचियाँ सेयार कीं जिनको कि १९२७ १९४० के बीच बिहार तथा उड़ीसा रिसिच सोसायटी से प्रकाशित किया गया । बिहार में हस्तलिखित ग्रन्थों का खोजकाय सम्प्रति बिहार रा्ट्रभाषा परिषद्‌ के द्वारा हो रहा है। कछकत्ता विश्वविद्यालय से १९३० में प्रकाशित झासामीज मेन्युस्क्रिप्ट (भाग र ) के अन्तर्गत संस्कृत की पोधियों का विदरण भी सम्मिखित है । ओरि- यन्टल-सेन्युस्क्रिप्ट लाइब्रेरी उज्ेन से १९६३६ और १९४१ में दो सूचियाँ छ्प चुकी हैं । वहाँ आज भी यह काय हो रहा है । सी० डी० दलाल द्वारा तैयार की गई पाटन के जेन-भण्डारों की ताइपत्रीय अन्थों की सूची को एल० बी० गांधी ने पूरा किया और वह गायकवाढ़ ओरियन्टल सीरीज बढ़ोदा से १९३७ में प्रकाशित हुई । ओरियन्टल इन्स्टीव्यट बदोदा के संग्रह की एक सूची १९४२ में छुपी | हुसी प्रकार एच० डी० बेलंकर द्वारा रायल एुशियाटिक सोसाइटी वग्जई चाखा के संग्रह की सूचियाँ १९०६-१९२८ और १९३० में छुपी । एच० आई० पोरमैन द्वारा प्रस्तुत और अमेरिकन ओरियन्टल सीरीज १२ में १९३८ को प्रकाशित संस्कृत की पोथियों की सूची भी भवलोकनीय है । थीकानेर संस्कृत लाइबेरी के संग्रह की एक सूष्ची १९४७ में भी प्रकाशित हुई । १९वीं दाताब्दी के उत्तराद्ध तक भारत में संस्कृत की जितनी भी हर्तलिखित पोथियों की सूचियाँ तेयार हो चुकी थीं उन सब को क्रमबद्ध रूप में व्यवस्थित कर और बड़ी तत्परता से व्यक्तिगत घरों तथा मठ-मन्दिरों में सुरक्षित प्रम्थ- संग्रहों की छानबीन करके डॉ० शाफ्रेक्ट ने तीन भागों में एक बहददू सूची तैयार की थी जिसका नाम है केटेलोगस केटेलोगोरस्‌ । इस बरहदु घ्न्थ के तीनों भाग क्रमशः १८९१ १८९६ और १९०३ ई० में छिपजिंग से प्रकाशित हुए। डॉ० आफ्रेक्ट का यह काय घड़े ही महत्व का है । इसी शहद सूची को परिवरद्धित एवं परिवर्सित रूप्र में तेयार करने का काय डॉ० सी० कुन्हन राजा भौर डॉ० वे०. राववन ने किया । इन दोनों दिद्ठानों के




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