राजा भोज | Raja Bhoja

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजा भोज का वंश ३ पर के, वसिच के आश्रम में घुस कर उसकी गाय को छीन ले गया । इस पर वसिध्च के अप्निकुण्ड से उत्पन्न हुए एक वीर ने शत्रुओं का नाश कर उसकी गाय उसे वापिस ला दी । यह देख मुनि ने उस योद्धा का . नाम परमार रख दिया ओर उसे राजा होने का आशीवाद दिया । उसी परमार के वंश में द्विज-वर्ग में रज्ररूप 'और अपने भुजबल से नरेश-पद को प्राप्त करने वाला उपेन्द्रराज नाम का राजा हुआ । पद्मगुप्तर ( परिमल ) के बनाये “'नवसाइसाकुचरित” में उत्तडूखुषिरे भीमे वशिष्ठो नन्दिवद्धनम्‌ । किलादिं स्थापयामास भुजन्ञाबुद्संज्ञया ॥ इसी प्रकार जिन प्रभसूरि के बनाए अबुंद॒ कल्प में भी लिखा दै:-- नन्दिवघेन इत्यासीव्माक्‌ शैलोयं दमादिजः । कालेनावंदनागाधिछ्टानात्त्वबुंद इत्यभूत्‌ ॥र२५॥। १ इसकी सातवीं पीढ़ी में राजा भोज हुआ था । र यह सगाकगुप्त का पुत्र और भोज के चचा मुझ ( वाक्यतिराज द्वितीय ) का सभा-कवि था । तंजोर से मिली नवसाइसाकचरित की एक हस्तलिखित पुस्तक से इस कवि का दूसरा नाम कालिदास होना पाया जाता है। यथयपि इस कवि ने अपने आश्रयदाता मुख के मरने पर कविता करना छोड़ दिया था, तथापि अन्त में मुज्ज के छोटे ज्राता ( भोज के पिता ) सिन्घुराज के कहने से नव- साइसाइचरित नामक १८ सगे के काव्य की रचना की थी । यह घटना स्वयं कवि ने अपने काव्य में इस प्रकार लिखी है :--- दिवं यियासुमेम वाचि मुद्रामदत्त थां वाक्पतिराजदेवः । तस्याजुजन्मा कविवांघवोसो सिनस्ि तां संप्रति सिन्घुराजः ॥ ( सगे १, श्लोक ८ ))




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