सामर्थ्य समृद्धि और शांति | Samtayar Samudhi Aur Shanti

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Samtayar Samudhi Aur Shanti by रामचन्द्र वर्मा - Ramchandra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्रामथ्ये, समृद्धि ओर दान्ति-- ६ अन्दाज नहीं ठग सकता । अपने पति और सन्तानकों प्राणसे भी बढ़- कर प्रिय समझनेवाली ख्ियाँ, जल्दी अपने मनमें उनकी मृत्युकी कल्पना भी नहीं कर सकतीं । इस प्रकारकी कल्पना भी उनके लिए असह्य वेदना उत्पन्न करती हैं। वे समझती हैं कि यदि इश्वर न करें कभी ऐसा विकट प्रसंग आ ही जाय, तो हम क्षण भर भी न जी सकेंगी । परन्तु फिर भी इस प्रकारकी बढुतेरी खियाँ अपने पति या पुत्र आदिकी मत्युके उपरान्त बरसों तक जीतीं और अपना समय बिताती हुई देखी जाती हैं । उनमेंसे कुछ ख़ियोँ तो ऐसी भी होती हैं, जो अपने समस्त कुठका, कुकी प्रतिप्राका और सबस्वका नादा हो जाने पर भी बहुत अच्छी तरह रहती हुई देखी जाती हैं । अनेक प्रकारके रोगोंमें रोगियोंकी अवस्था इतनी भयंकर हो जाती हैं कि यदि कोई उन्हें एक बार दूरसे या आडइमेंसे जरा सा भी देख के, तो उसकी अब सामने बार बार आकर चित्तको उद्दिम्र और उदास किए रहता हे | परन्तु, जब वैसा ही कोई प्रसंग स्वयं अपने ऊपर आ पड़ता है, तब आदमी उसे जैसे तैसे चुपचाप सहन करता ही है । इतनी सब ब्रातिं कहनेका तात्पर्य केवठ यही हैं कि प्रत्येक मनुष्यमें इतनी आधिक सामथ्ये होती है कि चाहे कितना ही बिकट प्रसंग क्यों न आ पढ़े, वह उसे निबाह ले जाता है; और यह बात प्राय: चारों ओर देखनेमें भी आती है । ख़ियाँ अपने नामके साथ अबला, भीरु तथा इसी प्रकारके और भी अनेक विशेषण लगाया करती हैं | परन्तु, अब तक बहुत सी ख़ियाँ हो गई हैं जो अपने पतिकी स्ृत्यु होने पर, शान्त चित्तसे उसकी चितामें प्रवेश कर गई हैं और अब भी, इस प्रकारकी बहुत सी ख्ियाँ




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