राजा भोज | Raja Bhoj
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.46 MB
कुल पष्ठ :
413
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)राजा भोज का बंश चर
न लिखकर 'त्रह्वक्षत्कुलीन:' लिखा है।* यह विचारणीय है। सम्भवत:
इस पद का प्रयोग या तो न्राह्मण वसिष्च को शत्रु के प्रहमारों से बचाने
बाला बंश मानकर ही किया गया होंगा,* या न्राह्मण बसिष्च के द्वारा
( अग्निकुंड ) से उत्पन्न हुए क्षत्रिय बंश की सन्तान समभक कर ही ।
परन्तु फिर भी इस पद के प्रयोग से इस वंश के न्राह्मण ओर क्षत्रिय की
मिश्रित सन्तान होने का सन्देह भी हो सकता है ।*
* व्रह्मक्ततकुलीनः प्रलीनसामन्तचक्रननुतचरण: ।
सकलखुरुतैकपुज्ः श्रीमान्मुज्श्चिरं जयति ॥
र लत: आायते इति चत्रं । घह्मण: क्तत्र॑ ब्रह्मच्तत्रम् ।
पताद्रशं कु, तर ज्ञात: 'बह्मक्षञकुलीनः' ।
कालीदास ने भी अपने रघुवंश में लिखा है :--
च्वतात्किलि जायत इत्युदग्रः
चात्रस्य शब्दों भुवनेषु रूढः ।
(सग र, शोक १३ )
३ इस सन्देह की पुष्टि में निम्नलिखित प्रमाण भी. सहायता
उदयपुर ( ग्वालियर ) से मिली प्रशस्ति में लिखा है :--
मारयित्वा परान्धेजुमानिन्ये स ततो मुनिः ।
उवाच परमारा [ख्यपा] थिंवेन्द्रो भविष्यसखि [६]
तदन्ववाये 5 खिलयज्ञसंघ-
वमामरादाह्दतकीतिरासीत् ।
उपेन्द्रराजो दिजवग्गरल्लं
सौ [शो] यांज्ितोतुद्ननपत्च [मा] नः [७]
( एपियाफ़िया इणिडिका, भा० 9, प० २३४ )
यहाँ पर मालवें के प्रथम परमार नरेश उपेन्दराज का एक विशेषया
दिजवग्गंरल्ल भी सिलता है ।
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