नागरी प्रचारिणी पत्रिका भाग 10 | Nagri Pracharini Patrika Bhag - 10

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Nagri Pracharini Patrika Bhag - 10  by महामहोपाध्याय राय बहादुर पंडित गौरीशंकर हीराचन्द्र ओझा - Mahamahopadhyaya Rai Bahadur Pandit Gaurishankar Hirachand Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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_ श्रो जगझाथदास लाकर, बी० ए० ४८४ एनननखुि े) धन )2 दर छडनि>छे भ्-नयर [वि बदन 5.4 पन्ने? ्) एन बडी नौ न एप दहन ही बद्रोड >। ननड जैज जी न प्रास्र ( तमासे तरदीकाते दुनियावी मरा दूर कुनेद-एऐ राधा दाशमंद ाँकि झज़ उफतादने श्रकसे तन ऊ कि मिस्ले जाफूरानस्त, रंगे सियादे कान्द सरसब्ज मीशवद याने अज़ मुल्ाकाते ऊ कान्ह खुशवक्त मीशवद ) ( मेरे खब सासारिक दुःखे को दूर करो ए वद्दी चतुर राघा-- जिसके तन ( जा केसरिया रंग का है ) की छाया पढ़ने से कान्द जा श्याम रंग के हैं इरे-भरे दो जाते हैं भ्र्थात्‌ जिसके मेट दाने से कान्इ प्रसन्न दो जाते हैं ) इस पुस्तक मे ६४० दोहे रखे गए हैं श्रौर दोहें। का पूर्वापर क्रम इसमे बिहारी के निज क्रम के अनुसार है । इसके क्रम तथा सख्या क॑ विषय मे बिहारी की निज क्रम की पुस्तकों के विवरण के श्रतगंत लिखा जा चुका है । (४५३ ) तिरपनवीं टीका बिह्दारी-रल्लाकर नाम की स्वय इस दीन लेखक की की हुई है । इसका प्रथम सस्करण नवल किशोर प्रेस लखनऊ मे छपकर पडित दुलारलालजी भार्गव द्वारा प्रकाशित हुआ है । इसके विषय मे कुछ विशेष वक्तव्य नटदीं है । इसमे दोष्टों के पूर्वापर क्रम तथा सख्या झनेक प्राचान हस्तलिखित प्रतियों के श्राघार पर चद्दी रखे गए हैं जा स्वय बिहारी के समभे गए । दोहों के पाठ भी इस में प्राचीन प्रतियें के सद्दारे यथासंभव शुद्ध किए गए हैं । इस संस्करण मे अलंकारादि का बखेढ़ा नहीं उठाया गया है । कवल दादी के यथार्थ भावों के स्पष्ट करने की चेष्टा की गई है। इसमें टीकाकार कहां तक सफल हुआ है यह विज्ञ पाठकों की भ्रनुमति पर निमंर है ।




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