लेखन - कला | Lekhan Kala

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Lekhan Kala  by स्वामी सत्यदेव जी परिव्राजक - Swami Satyadev Jee Parivrajak

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about स्वामी सत्यदेव जी परिव्राजक - Swami Satyadev Jee Parivrajak

Add Infomation AboutSwami Satyadev Jee Parivrajak

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(१५४) दूसरों की लिखी हुई पुस्तकें इनके यहाँ झाती हैं । ये महाशय उसे झपने यहां रस्त्र कर उसकी नकल करवा लेते है और दो चार सप्ताद बाद लेंग्वक को उसका हस्नखेख उवं#।। 301 1[1-- “दुख हे हमें झाप की पुस्तक पसन्द नहीं झांयी”-जिख कर लॉटा देते है । पांच चार महीने बाद उसी पुस्तक में इधर उधर काट छांट क्र, नया नाम देकर, अपने नाम से छुपवा लेते है । 'न हीग लगे न फिटकरी” मुफ्त में पे से कमाना श्र साहित्य सेचियों के लिस्ट में सब से पहले नाम लिस्वाना, यह काम इन लोगों का है । हिन्दी ससार में एक नहीं कई ऐसे नामघागी लेखक हैं जो किसी विषय पर बीस सतरं भी ठीक ठीक न लिख सकें पर जिनके नाम की पुस्तक छप रही है और वे उनसे फायदा उठा रहे हैं । .... “तीसरे प्रकार के लस्वक व है जो दूसरों करो बदनाम करने झथया हंसी मजाक के लिये लेख लिखते हैं । उनके दृदय डेप से कलुपित हैं । वे बी० ए० है, पम० पए० हें , खब प्रकार से याग्य हैं, लिख सकते है, पर उनके मन की प्रवृत्ति दूसरों की निन्‍्दा, दूसरों को नीखा दिखाने की श्रोर खगी रहती हे । वे भाषा के पगिडत हैं , शब्द चिस्यास खूब जानते हैं , बुद्धि भी कुशाम् है पर उनकी योग्यता उनकी बुद्धि साहित्य-च्ेत्र में मरख युद्ध करने में व्यय होती है। थे झपने पैने बार्णों से दूसरों को घायल कर झति प्रसन्न होते है शऔर श्रपने श्राप को साहित्य का सूर्य समझते दे । ऐसे मनुष्य भयानक हैं । वे देश और समाज के शत्र है । भाषा! के साधन वा दुरूपयोग कर वे समाज में कुरुखि उत्पन्न कर सबते है, समाज में द्ेघार्नि भडका सकते है , परोपकारी साहित्य से लोगों को कुछ काल के लिये घड्बिन रख सकते है । ऐसे व्यक्तियों खे साहित्य को. बचाना चाहिये |




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now