कल्प सूत्र | Kalp Sutra

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Kalp Sutra by श्री पुष्कर मुनि जी महाराज - Shri Pushkar Muni Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श् यहाँ यह स्मरण रखना चाहिए कि स्थविरावली मे जो देवद्धिगणी क्षमाश्रमण तक के नाम माये हैं, वे श्रुतकेदली भद्बाहु के हारा वर्णित नही है, अपितु मागम वाचना के समय इसमें संकलित कर दिये गये हैं । मुनि श्री पुण्यविजय जी के अभिमतानुसार समाचारी विभाग में “अंतरा वि से कप्पई नो से कप्पड त॑ रयाणि उवायणावित्तए” यह पाठ, संभवत आचार्य कालक के पश्चात्‌ का बनाया गया हो । सक्षेप मे सार यह है--श्रुतकेवली भद्बाहु के रचित कल्पसूत्र मे अन्य आगमों की तरह कुछ गंश प्रक्षिप्त हुआ है । प्रक्षिप्त अंश को देखकर श्री बेवर ने जो यह धारणा बनायी कि कर्पसूत्र का मुख्य भाग देवद्धिगणी के द्वारा रचित है*, और मुनि अमरविजय जी के शिप्य चतुरविजय जी ने द्वितीय भद्रबाहु की रचना मानी है , यह कथन प्रामाणिक नहीं है । आज अनेकानेक प्रमाणो से यह सिद्ध हो चुका है कि कल्पसूत्र श्रुतकेवली भद्रबाहु की रचना है, जब दक्षा श्रुत स्कन्घ भद्रबाहु निमित है, तो कल्पसूत्र उसी का एक विभाग होने के कारण वह भद्र- बाहु का हो निर्मित है, वा नियू'ह है ।* यहाँ पर यह भी स्मरण रखना चाहिए कि श्रुतकेवली भद्रबाहु ने दशाश्रुतस्कन्घ आदि जो आगम लिखे है, वे कल्पना की उड़ान मे नहीं लिखे है अपितु उन्होंने दशाश्र तस्कध, निशीथ, व्यवहार, और वृहत्कत्प ये सभी आगम नौवें पूर्व के, प्रत्यास्यान विभाग से उद्धृत किये हैं । * पुर्व गणधरकृत है, तो ये आगम भी पूर्वों से नियू'ढ होने के कारण एक हृष्टि से गणघरकृत हो है । दशाश्रूतरऊरंध छेद सूत्र मे होने पर भी प्रायदिचित्त सूत्र नही है, किन्तु आचार सूत्र है एतदथ आचायों ने इसे चरणकरणानुयोग के विभाग मे लिया है ।** छेदसूत्रो मे दशाश्रुतस्कघ को मुख्य स्थान दिया गया है ।* * जब ददाश्रतस्कंध छेद सूत्रों में मुख्य है, तो उसी का विभाग होने से कत्पसूत्र की मुख्यता स्वत: सिद्ध है । दशाश्र,तर्कंध का उल्लेख मुलसूत्र उत्तराध्ययन के इकतीसवें अध्ययन में भी हआ है 1 2 ७. इण्डियन एण्टीक्वेरी जि० २१ प० २१२-२१३ मंत्राधिराज-चिन्तामणि-- जैन स्तोत्र स दोह, प्रस्तावना प्र० १२-१३, प्रकाशक-साराभाई मणिलाल नवाब, अहमदाबाद सन्‌ १९६३६ । £.. (क) वंदामि भह बाहुं पाइण चरिमसयलसुयणाणि सुत्तस्स कारगर्मिसि दसासु कप्पे य बवहारे । नदशाश्रुतस्कंध नियुक्ति गा० है (ख) तेण भगवया आयारपकप्प दसाकप्प ववहारा य नवमपुव्वनीस दभूता निज्चूढा । उापंचवल्पभाष्य गाथा २३ चूणि १०, कतरं सुत्त ? दसा उकप्यो बवहारों य । कतरातों उद्धृत * उच्यते--पच्चक्खाणपुम्वाओ । नएदशाधुनस्कंघ चूणि पत्र २ ११. इहं चरणकरणाणुओगेण अधिकारों । --दशाश्रुतस्कंध, चूणि पत्र २ १२. इमं पुणच्छेयसुत्त पमुहभ्त । -दाशुनस्कध, चूणि, पत्र २ १३. पणवीसभावणाहि, उद्दसेसु _ ददाइणं । जे भिक्खु जयई निच्च॑ं से न अच्छई मण्डले । -एउत्तराध्ययन अ० ३१ गा० १७




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