गोस्वामी तुलसीदास | Goswami Tulsidas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दै कट देना प्रारंभ किया कि वे वहाँसे हटकर अस्सी घाटपर चले आए जो उन दिनों काशीकी बस्तीसे बाहर निराले जगकमें पड़ता था । गोस्वासीजीकी प्रसिद्धि उनके समयमें ही हो चली थी । बड़े-बढ़े विज्ञान सन्त भक्त और महात्मा उनके पास विचार-विमशंके लिये निरन्तर आते-जाते रहते थे । उस समयके प्रसिद्ध विद्वान श्रीमघुसूदन सरस्वतीजीने उनसे शास्त्र-चर्चा करके कहां था--+ आनन्दकानने हस्मिज्नझमस्तुलसीतरुः । कवितामंजरी यस्य... रामघ्रमरभूषिता ॥ गोस्वामीजी के मित्रों और स्नेहियोंमें अब्दुरहीम ख़ानख़ाना महाराज मानसिंह नाभाजी और मधघुसूदन सरस्वती आदि महापुरुष प्रमुख थे । कादशी्मे इनके सबसे बड़े रनेही और भक्त भदेनी मुदजेके भूमिहार भूमिपति टोडरजी थे जिनकी खत्युपर उन्होंने कई दोहे कहे हैं । गोस्वामीजीकी सम्बन्धमें पहले यह दोहा अधिक प्रसिद्ध था-- संबत सोरह सें असी असी गंगके तीर । स्रावन सुक्का सप्तमी तुलसी तज्यो सरीर ॥ पर बाबा बेनीमाघवदालकी पुस्तक्में दूसरी पड़ इस प्रकार है या कर दी गई है-- श्रावण कृष्णा तीज शनि तुलसी तज्यौ शरीर ॥ उनकी यही मसिर्वाण-तिथि ठीक भी है क्योंकि टोडरके चंदाज आजतक इसी तिथिको गोस्वामीजी के नामपर सीधा दिया करते हैं । सूकरखेत कुछ छोगोंनि में पुनि निज गुरुसन सुनी कथा सो. सूकरखेत । के आधारपर गोस्वामीजीका जन्मस्थान एटा ज़िलेके सोरों नामक




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