महानता की और | Mahanata Ki Aur

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : महानता की और  - Mahanata Ki Aur

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आचार्य चतुरसेन शास्त्री - Acharya Chatursen Shastri

Add Infomation AboutAcharya Chatursen Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
तुम सिर्फ मुष्य हो मनुष्य की कोई जाति, धम, देश और राष्ट्र नही है । वह केवल मनुष्य है । मनुष्यता के नाते सारे ससार मे विश्व व्याप्त ख्रातसघ की स्थापना करना मनुष्य का सबसे बडा कत्तव्य है! अपने दिमाग में मजबूती से यह विचार पैदा कर लो कि सारी दुनिया के मनुष्य तुम्हारे भाई हैं और सारी दुनिया तुम्हारा घर है । देश, राप्ट्र, जाति और धम ये जब त्तक कायम रहेगे तब तक मनुष्य एक-दूसरे से लड़ते रहेगे। तुम यह कहते रहो कि हिंदु- स्तान हमारा देश है । हिंद हमारा राष्ट्र है। अग्रेज यह कहते “रहे कि इगलेड उनका देश है, जमंन यह कहते रहे कि जमनी उनका देश है । इस तरह से, इस भाति सारी दुनिया के लोगो मे जब तक अपने देश और राष्ट्र की भिनतता की दीवार कायम रहेगी तब तक वे एक-दूसरे से लडेंगे। मनुष्य की लडाई की समाप्ति तभी हो सकती है जवकि उनके हृदयो से परस्पर की मिरनता की भावनाएं दूर हो जाए । सारी दुनिया मे मनुष्य रहते है। अब से कुछ पहले जब विज्ञान का पुरा विकास सही हुआ था, तो मपुप्य एक-टूसरे से बहुत दूर था । दस-बीस कोस चलना भी इस लोक से उस लोक की यात्रा के समान कठिन था । विज्ञान के नये यातायात-सबधी आविष्कारो से पहले जब लोग तीथयान्नाओ को निकलते थे तब गले मिलकर रोया करते थे और इसवा यह मतलब होता था कि अबके विछुडने पर फिर मिलना दुर्लभ है। वर्षों यात्नाओ मे गुजर जाते थे और वड़ी-




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now